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________________ वर्ष ] श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [ ४७ इधर मेरा और श्रीराजेन्द्रसिंहजीका भी परस्पर यथोचित वार्तालाप होता ही रहता था। उन्होंने इस विषय में सब प्रकारका ठीक विचार कर, पीछेसे कुछ सूचित करनेका मुझसे कहा। मैं सिंघीजी के साथ ग्रन्थमाला आदिके बारेमें विचार-विनिमय करके वहांले बनारस हिंदुयुनिवर्सिटीमें पण्डितजीसे मिलता हुआ, अहमदाबाद पहुंचा । * शान्ति निकेतन से ग्रन्थमालाका कार्यालय उठा कर अब अहमदाबादमें उसे रखनेका निश्चय हुआ । अभी तक १ प्रबन्धचिन्तामणि (मूल), २ पुरातनप्रबन्धसंग्रह, ३ प्रबन्धकोष, ४ विविधतीर्थकल्प और ५ लाईफ ऑफ हेमचन्द्राचार्य ये पांच ग्रन्थ छप कर प्रकाशित हुए थे और दूसरे ५-६ ग्रन्थ छप रहे थे । बनारस में . भी पण्डितजीके तत्वावधान में कुछ ग्रन्थोंके तैयार करने - करवानेकी व्यवस्था की गई। प्रायः दो-एक महिने बाद ता. २२. १०. ३५ का लिखा हुआ सिंघीजीका नीचे मुआफिकका पत्र मुझे मिला - " सविनय प्रणाम. आपका पत्र नहीं सो दीजियेगा और सेठ प्रतापसिंह भाईकी लडकीके साथ चि० राजेन्द्रसिंह के सम्बन्धके बारेमें, ये उस लडकी को देखने अहमदाबाद आयेंगे | आपका अभी वहां रहना होगा या नहीं, सो इस चिट्ठीके मिलने पर कृपा करके तार द्वारा समाचार लिखियेगा । आपका तार मिलने पर ये यहांसे रवाना होंगे । और हम कल सुबह चार बजे पावापुरीके लिये मोटरसे रवाना होंगे, मगसर बदि ३ तक वापस आ जायेंगे । और पूज्य माजीकी तबियत कुछ नरम है. और सब कुशल है, आपका कुशल लिखियेगा । मि. कार्तिक बदी ११ रातको १० बजे । आपका विनीत बहादुरसिंह इस पत्र की सूचनानुसार मेरा तार मिलने पर, चि० राजेन्द्रसिंहजी अहमदाबाद आये । उनके साथ सिंघीजी का यह छोटासा पत्र था - " सविनय प्रणाम. चि• राजेन्द्रसिंह आते हैं, इनके बारेमें आपको पहले सब लिख चुके हैं । और इनके साथ हस्तलिखित 'शालिभद्रचरित्र' व Mathura की किताब जरूर भेज दीजियेगा । यहां हमेशां लोग देखने को चाहते हैं। और आपका कुशल लिखें ।” श्री राजेन्द्रसिंहजी कुछ दिन अहमदाबाद रह कर, फिर बामणवाडा में श्रीशान्तिविजयजी महाराजके दर्शन कर, वे वापस कलकत्ते गये। सिंघीजीका उनके पहुंचने पर ता. ११. १२. ३५ का लिखा मुझे यह पत्र मिला - " सविनय प्रणाम. चि० राजेन्द्रसिंह यहां राजीखुशी से पहुंचे जिसका समाचार आपको मिल गया है । उनके साथ हस्तलिखित पुस्तक १ व छपी हुई पुस्तक १ पहुंची । सम्बन्धके बाबद में सब बातें मालूम हुई। बाद उसके आपका पत्र उनके नामका आया वो भी देखा । आप कृपा करके सेठ प्रतापसिंह भाई से कह दें कि - हम लोग आपस में यहां सलाह ठीक करके जो कुछ तै होगा, उनको final कह देंगे । ज्यादह देर नहीं करेंगे । आपका कुशल लिखियेगा और यहां योग्य कार्यसेवा लिखियेगा ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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