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________________ ३८] भारतीय विद्या अनुपूर्ति [तृतीय उल्लेख 'अरुणद् यवनो माध्यमिकाम्' इत्यादि उक्तिके रूपमें पाताल महाभाष्यमें मिलता है और जो शिबिजनपदकी राजधानी थी। इसी माध्यामिकाके नाम परसे जैन श्वेतांबर संप्रदायके एक मुनिसंघकी पुरातन कालमें एक शाखा प्रसिद्ध हुई थी जिसका उल्लेख कल्पसूत्रकी स्थविरावलीमें 'मज्झिमा साहा' (माध्यमिका शाखा)के रूपमें किया हुआ मिलता है। इस स्थानमेंसे बहुत प्राचीन शिक्के भी मिले हैं जो इतिहासकी दृष्टिसे बडे महत्त्वके हैं' इत्यादि । इस कथनको सुन कर, सिंघीजी उस स्थानको देखने के लिये बहुत उत्सुक हुए और बोले कि 'उसे देखे विना हम यहांसे नहीं जाँयगें।' मैंने भी उस स्थानको कभी आंखोंसे तो देखा नहीं था, सो मैं भी उसे देखनेके लिये वैसा ही उत्सुक था। पर वहां जाना बडा कठिन मामला था । मोटर वगैरहका कोई अच्छा साधन वहां उपलब्ध नहीं था। एक तांगावाला मिला जो बड़ी हिचकिचाहटके साथ बहुतसा किराया देने पर चलनेको राजी हुआ। .. बात यह थी, कि वहां जाने का रास्ता बहुत ही खराब और भयंकर पथरीला था। तांगावालोंको भी जानेमें बडा कष्ट होता था और घोडेको एवं तांगेको-दोनोंको चोटें लगनेका खतरा था। पर हमको किसी तरह जाना था इसलिये उसे मुंहमांगा किराया दे कर हम दोपहरके दो-ढाई बजे चित्तोडके स्टेशनसे रवाना हुए। फासला तो ६-७ मील ही का था पर वहां पहुंचने में हमें पूरे ढाई घंटे लगे। रास्तेमें तांगा उछल उछल कर चलता जाता था और हमारी कमर और कुल्लोंकी हड्डियोंकी ठीक मरम्मत होती जाती थी। हरएक उछल - कूद पर हम दोनों तांगेके गद्दे परसे (जो कि नामका ही गहा था और हमारे नितंबकी चमडीको यों ही वह छील छील कर मुलायम कर रहा था) एक वेंत उछल कर फिर उस पर जमते थे । सिंघीजीका अपनी जिंदगीमें ऐसे तांगे पर सफर करनेका यह शायद पहला ही मौका था। मैं उनकी ओर टकटकी लगा कर देखा करता था और वे मेरी ओर । जहाँ कहीं ऐसी खास उछल-कूदकी जगह आती तो तांगावाला बड़ी रहमदिलीके साथ कहता 'बाबूसाहब, जरा संभल कर बैठना । साला रास्ता बहुत ही खराब है । इस रास्ते तो आपके जैसा आदमी कभी कोई नहीं आया गया। यह तो जंगली भील लोगोंके आने-जानेका रास्ता है। वहां तो आप जैसे बडे आदमियोंके देखनेकी कोई चीज नहीं है। नाहक यों ही आप इतना कष्ट उठा कर वहां जा रहे हैं। यह तो आपकेसे शरीफ आदमीको देख कर मैं चला आया, नहीं तो कोई २५ रूपये भी दे तो मैं नहीं आता। कहीं घोडेका पैर टूट गया या तांगाका पैया टूट गया तो कितनी मुशीबत हो, इसका आप ही खयाल कर लीजिये' - इत्यादि कितनी ही बातें तांगेवाला करता जाता था और हम सुनते जाते थे। जहाँ कहीं बहुत ही खराब जगह आती तो वहां तांगावाला हमको नीचे उतरनेकी सलाह देता और हम उसका तत्काल अमल करते; इतना ही नहीं पर बहुत दूर तक पैदल ही चलना पसन्द करते । क्यों कि उससे कुछ हमको आराम ही मिलता था। तांगावाला भी हमको बहुत भले आदमी समझ कर हमारी प्रशंसाके फूल बिखेरे जाता था। - इस तरह हम नगरी पहुंचे। वहां जो कुछ दो-तीन पुरातनकालीन ध्वंसावशेष थे उनको देखा । हाथीवाडेके नामसे प्रसिद्ध खण्डहरके भीमकाय शिलाखण्डोंको देख कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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