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________________ बर्ष श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [३५ केसके कामके समाप्ति श्रीमुंशीजीके आये बाद केशरियाजीके केस में खूब तेजी आई और कोई ९-१० दिन में ही सारी कार्रवाई खत्म हो गई । कोई ढाई-तीन महिने उदयपुरमें पडे रहनेसे बडी में चैनी हो रही थी सो दूर हुई और केसका मामला पूरा होते ही वहाँसे रवाना होनेका प्रोग्राम तय हुआ। सिंधीजीको भी कलकत्ते जानेकी बड़ी उतावली थी और उनको अपने कारोबारकी कितनी ही महत्त्वकी समस्यायें उन्हें विवश कर रही थीं। पर केशरियाजीका यह मामला एक प्रकारसे उन्हींके सर पर पड गया था, इसलिये इसका अन्त हुए विना ये वहाँसे खिसकना नहीं चाहते थे। इस मामले में जितना श्रम सिंघीजीने उठाया उतना और किसीने नहीं उठाया। बहुत कुछ समय और शक्तिके व्ययके उपरान्त उन्होंने मार्थिक व्यय भी काफी किया। कोई १० हजारके लगभग उनका वहाँ पर खर्च हुआ होगा। यदि सिंघीजी न होते तो न मालूम केशरियाजीका वह मामला किस तरह चलता और कैसा उसका स्वरूप होता। इसका मतलब यह नहीं समझना चाहिये कि सिंघीजी तीर्थों के अघडेके बारेमें कोई खास दिलचस्पी रखते थे या अन्यान्य सांप्रदायिक सेठोंकी तरह दिगम्बर-श्वेताम्बरकी पक्षापक्षीमें उनको आनन्द आता था। वे इस विषयमें बहुत निष्पक्ष थे और ऐसे सघडोंसे तो उन्हें एक प्रकारकी नफरत थी । केशरियाजीके मामलेमें वे इस तरह फंस गये उसका कारण खास शान्तिविजयजी महाराज थे। उन्होंने इस तीर्थके निबटारेके लिये उक्त रीतिसे जब अनशन कर लिया और इस मामलेको वैसा रूप दे दिया, तब उनकी तरफ विशिष्ट भक्ति होनेके कारण सिंघीजीको उस प्रवृत्तिमें योग देना पड़ा और फिर धीरे धीरे इस प्रकार केसका सारा मामला संभालनेका उनको फर्ज पडा। यह तो उनका खास खभावगत लक्षण था कि जिस कामको वे अपने हाथमें लेते उसको अपनी पूरी शक्ति लगा कर पूरा करते । जैसे वैसे काम करना या बीचमें ही उसे छोड देना यह उनकी प्रकृतिके सर्वथा विरुद्ध था। उदयपुरके कुछ स्थानोंका निरीक्षण उदयपुरमें रहते हुए हम दोनों आसपासके ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थानोंको प्रायः देखने जाया करते थे। एक दिन एकलिंगजीका स्थान देखने गये । आते हुए जरा देर हो गई थी और नागदाके पासकी घाटी पार करते अंधेरा हो गया था। घाटी चढ़ते चढ़ते मोटरमें कुछ खराबी हो गई और इसलिये वहां कुछ रुक जाना पडा । हम दोनों मोटरमें बैठे थे और ड्राइवर इन्जीनकी खराबी सुधार रहा था। इतने ही में बगलकी झाड़ीमेंसे एक बडासा शेर निकल आया और वह हमारे रास्ते में कोई २०-२५ फुटके फासले पर सडकके बीचमें खडा हो कर, हमारी ओर टकटकी लगाकर देखने लगा। ड्राइवर बडा होशियार था। वह एकदम कूद कर अपनी सीट पर बैठ गया और तेजदार बत्ती बना कर खूब जोरोंसे होर्न बजाने लगा। नशीबसे चक्करके. धुमाते ही मोटर भी स्टार्ट हो गई। उसने बड़ी तेजीसे मोटर छोड दी। जैसी मोटर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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