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________________ वर्ष] श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [२९ भीतर-भीतर सब कार्रवाई पूरी हो जायगी। इसी गिनतीसे दोनों पार्टियोंने सर सेतलवड और मि. जिन्ना जैसे बडे कॉन्सलोंको, बडी भारी फीस पर, वहां बुलाया था। पर तीन-चार दिनकी कार्रवाई के बाद तो कुछ पता चला कि केसका स्वरूप क्या है और उसके लिये किस किस प्रकारके सबूत पेश किये जाने चाहिये और किस तरह उनका परीक्षण होना चाहिये। पहले सबकी यह कल्पना थी कि केशरियाजीमें जो पूजापद्धति, अधिकारव्यवस्था और आय - व्ययव्यवहारके संबंधमें परंपरागत रूढ़ि प्रचलित है उसीके विषयमें विचार होगा और उस परसे किस पक्षका वहां पर कितना अधिकार साबित होता है यह निर्णय किया जायगा। पर केसकी सुनवाईके आरंभ होने पर सबसे पहले यह प्रश्न खड़ा हो गया कि वास्तव में यह मन्दिर किसका बनाया हुआ है, कब बना है, इसमें जो मूर्ति प्रतिष्ठित है वह किस पक्षकी है ? इस प्रश्नका जवाब तो एक प्रकारसे खूब गहरे ऐतिहासिक संशोधनका विषय था। उसके लिये वहाँके सब शिलालेखोंकी जांच होनी चाहिये, जितने पुराने कागजपत्र हैं उनकी जांच होनी चाहिये, जितने भी साहित्यगत उल्लेख उस तीर्थके बारेमें प्राप्त होते हैं उनकी आलोचना होनी चाहिये, मन्दिरकी स्थापत्य रचनाके विषयमें वास्तुशास्त्रोंका अवलोकन होना चाहिये, पूजा और प्रतिष्ठापद्धतिके लिये प्रतिष्ठाकल्पोंपरसे परीक्षण होना चाहिये, मन्दिरमें स्थापित अन्यान्य देव-देवियोंकी मूर्तियोंका स्वरूप जाननेके लिये रूपमण्डन आदि शास्त्रोंका विधान विचारना चाहिये - इत्यादि अनेक प्रकारके प्रश्न इस विषयमें उपस्थित हो गये और विना इन प्रश्नोंका उत्तर मिले केसका कोई स्वरूप निश्चित होना संभव नहीं था। यह समस्या देख कर सब कोई विलक्षितसे हो गये । न इसके लिये श्वेताम्बरोंकी कोई तैयारी थी न दिगम्बरोंकी । ५-७ दिनकी कार्रवाईके बाद फिर इसकी तैयारी होने लगी। इससे मालूम हुआ कि केस कम-से-कम ५-६ सप्ताह तक चलेगा और उसके लिये बहुत कुछ खर्चा करना पड़ेगा। केसकी कार्रवाईका सारा भार सिंघीजी पर केसने जो स्वरूप पकडा, वह एक प्रकारसे मेरा तो अभ्यस्त विषय था पर और सबके लिये घोर अन्धकारसा था। सिंधीजी इस विषयके निष्णात तो नहीं थे पर उनकी समझमें सारी बातें बड़ी आसानीसे आ जाती थीं। उस केसका सारा मसाला तैयार करनेका भार, एक तरहसे हम दोनोंके सर पर आ पडा था। और सिंघीजीको तो मार्थिक भार भी अपने सरपर वैसा ही बड़ा और उठाना पडा । खाने-पीने, रहने करनेका सब इन्तजाम उन्होंने अपनी जेबसे किया था। १५-२० आदमी रोज उनके रसोडेमें जीमते थे। चाय, दूध, मिठाई, मेवा और फल आदि सबके लिये सदा उपस्थित रहते थे। दो-दो चार-चार दिन केसकी सुनवाई हो कर फिर बीचमें कुछ दिन कार्रवाई बन्ध रहती थी और कॉन्सल वगैरह आते जाते रहते थे। । एक दिन सबके सब केशरियाजीका मन्दिर प्रत्यक्ष देखनेके लिये भी वहां पहुंचे। जिन्ना साहब भी उसमें शामिल थे । सर सेतलवड मूल मन्दिरके गर्भागारमें गये और उन्होंने मूर्ति वगैरहको ध्यानसे देखा । मन्दिरके अन्दरके भागमें जो दो-एक शिलालेख थे और जिनके विषयमें आगे चल कर बहुत कुछ वाद-विवाद हुआ, उनको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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