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________________ वर्ष] श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [२१ सबसे पहले एक छोटा स्वतंत्र मकान अलग बनाना सोचा जिसमें मैं रह सकूँ और फिर बादमें दूसरे वर्ष छात्रालयका बडा मकान बनाया जाय । इसके लिये, पूजाकी छुट्टियोंके पहले ही एक छोटासा समारंभ किये जानेकी तरतीब सोची गई और उसीमें गुरुदेव रवीन्द्रनाथके हाथोंसे उस मकानका खातमुहूर्त कराये जानेकी भी योजना की गई। सिंघीजीको यह कार्यक्रम बहुत पसन्द आया और उसके लिये अपेक्षित सब सामग्रीकी उन्होंने तैयारी करवाई। निश्चित दिन पर वे वहां पहुंचे और स्वयं गुरुदेवके हाथोंसे वह खातमुहूर्त का काम सानन्द संपन्न हुआ। सिंधीजीकी भोरसे शान्तिनिकेतननिवासी सभी जनोंको चहापान आदि कराया गया। इस तरह 'सिंघी जैन छात्रालय'का बडे उत्साहके साथ प्रारंभ हुआ और पूजाकी छुट्टियों के बाद, सुप्रिन्टेन्डेन्ट वगैरहकी भी ठीक व्यवस्था कर ली गई । विद्यार्थियोंमेंसे बहुतसे सिंधीजीके निकटके कुटुम्बियोंमेंसे थे इसलिये कहीं उनके अभिभावक किसी प्रकारकी कोई त्रुटि आदिका बहाना न खोज सके और तदर्थ छात्रालयका कोई दोष न निकाल सके इसलिये खान-पान माविकी बहुत ही उत्तम व्यवस्था रखने-रखानेकी ओर उनका बहुत खयाल रहता था और उसके लिये यथेष्ट खर्च करनेकी उन्होंने स्वीकृति दे दी थी। यद्यपि मेरा इस विषय में कुछ विरोध भी था। क्यों कि शान्तिनिकेतन जैसे स्थानमें, जहां अन्य सेंकडों विद्यार्थी भाश्रमके सर्वसाधारण भोजनालय में बहुत ही सादा और सस्ता भोजन करते हैं वहां हमारे जैन विद्यार्थी इस प्रकारके रोज गरिष्ठ पकान और माल-मलीदा उडाते रहें यह असमंजससा लगता है। पर सिंधीजीको अपने समाजके लोगोंकी क्षुद्र और दोषदर्शी मनोभावनाका बहुत अनुभव था। इस. लिये उनका कहना था कि-एक तो यों ही ये लडके आज बक कभी घरसे बाहर महीं निकले और न किसी अच्छे संस्कारी वातावरणमें कभी हिले-मिले, इसलिये इनकी भादतें बहुत ही हलके प्रकारकी और तुच्छ भावसे भरी होती हैं। छोटी छोटी बातोंमें ये अपना मन बिगाडते रहेंगे और मां-बापोंसे अनेक प्रकारकी शिकायतें करते रहेंगे। और दूसरी बात, मां-बापोंकी मनोवृत्ति भी ऐसी ही ईर्ष्यादग्ध और दोष देखनेवाली है जो किसी न किसी तरह हमारी त्रुटिको खोज निकालनेमें तत्पर रहती है और हमारे अच्छे कामको भी, यदि बन सके तो बदनाम करने में मौज मानना चाहते हैं । सिंघीजीकी यह भविष्यदार्शता बिल्कुल ठीक थी और इसका मुझे भी थोडे बहुत अंशमें, कामके आगे बढ़ने पर, प्रत्यक्ष अप्रत्यक्षरूपमें कुछ अनुभव मिला था। वह शीतकाल तो अच्छी तरहसे व्यतीत हुभा और परीक्षायें वगैरह दे कर, ग्रीष्मकी पुट्टियों में विद्यार्थी अपने अपने स्थान पर चले गये। मैं भी अन्थमालाके कार्यके निमित्त गुजरातमें चला आया। - छात्रालयकी निष्फलता मसे एक वर्षके अनुभवसे ज्ञात हुआ की छात्रालयका जैसा चाहिए वैसा उपयोग नहीं हो रहा है और खर्च इसके पीछे बहुत अधिक उठाया जा रहा है । जो विद्यार्थी प्रविष्ट हुए हैं वे बहुत ही सामान्य कोटिके हैं और उनमेंसे आगे बढनेकी शायद ही कोई योग्यता रखता हो। इस विषय में मैं कुछ विशिष्ट विचार कर ही रहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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