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________________ २० ] भारतीय विद्या टीफीमके वख्त मूडी के साथ चाय जिसमें आधा पाव दूध जरूर रहे। शामके वख्त - तैलकी - जितनी जरूरत हो। जरूरत नहीं । आटेकी पुरी, इसलिये हमेशां टिकडा हो । आटेका टिकडा जितना जिसको भूख हो । दो तरकारी उसमें एक धीकी और एक हलवा या दूसरी कोई मीठेकी चीज । शामके वख्त भातकी टिकडा कुछ होना चाहिये लेकिन पुरी अभी संभव नहीं है सुबहको किसी दिन भी दूधके बदले चाय नहीं होना चाहिये, दूध ही हो । आपको इस व्यवस्था में कोई परिवर्तन करना जरूरत न मालूम पडे तो तुरन्त इसे काम में लाने का इन्तजाम कर दीजियेगा । परिवर्तनकी जरूरत हो तो हमें सूचित करियेगा, दूधका इन्तजाम पूरा कर लीजियेगा ।" इस पत्र की बातों से पाठकोंको ज्ञात हो जायगा कि - लडकोंके स्वास्थ्य, खान-पान, रहन-सहन आदि सभी बातोंकी कितनी बारीकीके साथ सिंघीजीने विचारणा की श्री और किस तरह मुझे शान्ति निकेतन में रहने और अपने कार्य में प्रगति करनेके निमित्त उनका उत्साह काम करता था । उस पहले ही वर्ष में 'सिंघी जैन छात्रालय' में कोई १५-१७ विद्यार्थी दाखल हो गये । जो सम्पन्न घरोंके लडके थे वे अपना बन्धा हुआ खर्चा देते थे । बाकीके कुछ विद्यार्थी छात्रालयके खर्चेसे ही रहते थे । इन स्कूलके विद्यार्थियोंके अतिरिक्त कुछ, उच्च अभ्यासार्थी विद्यार्थी भी मेरे पास अध्ययनकी दृष्टिसे वहां पहुंचे जो यथानियम विश्वभारती के विद्याभवनमें प्रविष्ट हुए और यथानियत उच्च प्रकारका विद्याध्ययन करने लगे । अनुपूर्ति [ तृतीय शान्तिनिकेतनमें स्वतंत्र स्थान बनानेका विचार उस पहले वर्षका वातावरण बहुत कुछ उत्साहवर्द्धक रहा। जो मकान हम लोगोंको मिले थे वे आरोग्यकी दृष्टिसे उपयुक्त नहीं थे। दूसरे मकान वहां उप लब्ध हो सके वैसी परिस्थिति नहीं थी और हम सबको मकानका कष्ट अनुभूत होने लगा। सिंघीजीसे इस विषय में बातचीत होती रही तो फिर उन्होंने सोचा कि यदि ऐसा है तो क्यों नहीं फिर हम ही अपना स्वतंत्र एक अच्छासा मकान बना लें जिसमें 'सिंघी जैन ज्ञानपीठ' और 'सिंघी जैन छात्रालय' का समावेश हो जाय । इसके लिये कोई १०-१२ हजार रूपये का खर्चा अंदाजा गया था । यदि शान्तिनिकेतनवाले इसके लिये कोई उपयुक्त अच्छी जमीन देना स्वीकार करें तो इस मकाant बनानेका सिंधीजीका संकल्प हो गया था । मैंने आश्रमके कार्यकर्ताओंसे इस fare परामर्श किया और फिर स्वयं गुरुदेव से चर्चा की। उन्होंने बहुत ही उत्सा के साथ मुझे कहा कि आश्रमके जिस भागमें जो खाली जमीन आपको पसन्द हो, भाप उसे ले सकते हैं और वहां मकान बना सकते हैं। आश्रम सब प्रकारकी अपे. क्षित सहायता करने में तत्पर रहेगा । तदनुसार एक अच्छा लंबा - चौडा जमीनका टुकडा मैंने पसन्द किया और उस पर पक्का मकान बनानेकी तैयारी की जाने लगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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