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________________ २२६] भारतीय विद्या [वर्ष ३ थिर सय चवद चियाल थंभ सइ सतर निरंतर, सई अढार पूत्तली जडी हीरइ माणिक वर । त्रीस सहस धजदंड कलस सोवन विहारइ । सतर सहस गय तुरिय लल्ल गिणि रुद्र निहालइ । इत्ताइ पिक्खि सिद्धाहिवइ, रोमंचिय सुरनर श्रवइ । सुप्रसिद्ध कित्ति जेसिंघ तुअ, टगमग चाहइ चक्कवह ॥ १ आगलि सांडिउ त्राकार करतउ देखि भाट बोल्यउ दिसिगयंद गडअडइ सिंह पेखिणि गुंजारइ । कणय कलस झलहलइ डंड उडुंड विहारइ । नच्चेइ रंगि तिह पूतली हेक गाए हेक वाए। इण परि सर उच्छलिय संख सबदइ आलाए। पेषता सुरनर सयल परि, घमघमंति सर उच्छलिग । तिणि कारणि सिद्धनरिंद सुणि, वृष बल्ल थक्कर डरिग ॥२ सरगि इंद्र सलहिए राउ पायालहि वासिग । मृत्युलोकि तूं राय अवर कुण ऑपम कासिग । हेमसेत मंझारिन को हिव अत्थि नराहिव । अत्थि न चउत्थउ कोइ सच जं' सिद्धाहिय । त्रिहि राय त्रिभुवन तवे, जेसिंघ सच्च समुच्चरुं। जय अस्थि चउत्थउ राय कहि, तो डब्ब जलंतउ करि धरूं ॥३ राउ ग्रहइ उग्रहइ राउ उत्थपि इक थप्पइ। रायां मलइ मरट्ट राउअ समरि करि उप्पइ । डक ढक्क त्रंबक मेघ डंबर उद्दालइ। राउ जडइ पिंजरइ राउ अग्गलि करि चालेइ । चालवे चक्र चिहुं दिसि तणइ, एक अंग भूबलि वरी। मयणल्लदेवि कर्णह घरिणि, सिद्धराउ किउ उर धरिय ॥ ४ आ पद्य बीजां पण संग्रहोमा किंचित् पाठभेद साथे मळी आवे छे. उपदेशतरंगिणीमां आनो पाठ नीचे प्रमाणे छे. थर सई चऊद चुंआल थम्भ सई सत्तर निरंतर । सय पुत्तलीय अढार जडी मणिमाणिक रयंवर । तीस सहस धजदंड कलस दससहस्स सुवनय । छप्पन्न कोडि गयतुरिय लग्ग तिणि रुद्द महालय । कवि गद्द सद्द इम ऊचरइ, सुरनर रोमंचिय सवइ । सुपसिद्धि खित्ति जयसिंह कित्ति, टगमग चाहई चकवा ॥ भाषानी दृष्टि ए आ पाठ वधारे प्राचीन जणाय छे, परंतु शब्द अने अर्थनी दृष्टिए ऊपरनो पाठ वधारे ठीक लागे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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