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[वर्ष ३
२२२] भारतीय विद्या दिसि दसइ हिव हूई मोकली । झलहली सिसिपूनिम ऊजली। कुमुदु संमदु सुगंधु विस्तरइ । भमरु पापलि आकुल तउ फिरइ ॥ ८७ वर्षइ पाणी स्वाति जीमूतु जाणी । पात्रापात्रिइं अंतरं तु प्रमाणी । सीपं मोती धान्य केदार सार । व्यालि लीला होइ हेला असार ॥ ८८
अथ हेमंतु रितुवर्णनम् । शरदु रितु निरोपिउ, हेव हेमंत रोप्यउ । जण घण मणि ओपिउ, तु मनोजन्म कोपिउ । रमण रमइ रामा, हावभावाभिरामा ।
सयरि सवि सकामा, ते न लेइं विरामा ॥ ८९ गंधिई गिरूउ महकइ मरूउ । सदा सरूउ वनभूमि हूउ। सोडिइं सूआलउ वरु नामु वालु । एहू जि मालउ रितु रहई विमालउ ॥९० प्रियंगु मुखा गुणि गंधि पूखा । सालून साखा फलफूलि भाखा । सुबंधु वाजी (जीवा?) नवरंग दीवा । मत्तालिरावा कृतहावभावा ।। ९१ रलीय रंगि तरंगित कापडां । प्रगट पुण्य प्रमोदई सांपड्यां । सरस कूर कपूर ति जीमीइ । सुखीय भोग भली परि कामीइ ॥ ९२ सहजि सेवई भोगपरंपरा । नवल नारीय चीर सुबंधुरा । इसई लेषइ ते रितु रूयडी । भवह भाविइं आवीय आपडी ॥ ९३
अथ शिशिर रितुवर्णनम् । रितु शशिरु पहूतउ, हेव हेमंतु जीतु । मयणु घणु वदीतु, भोगि संभोगि चीतउ । हिम पडइ सनाढा, वाय वाजइ सुताढा ।
नर निरुप थाढा, भामिनी भोगि गाढा ।। ९४ तेलि मर्दनु सुगंधि करावइ । यामिनी श्रमु शरीरि हरावइ । नागवेलि दलनउ मुखि रंग । केवि कामिय समारइ अंग ॥ ९५ दोटी मोटी ऊजली एक ताई । माथइ फाली मोजडी पाय लाई ।। तातइ पाणी हाथ पाया पषालइ । तापिउं भावइ तादि वेलां सीआलइ ॥ ९६
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