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[वर्ष ३
२१६] भारतीय विद्या रिमिझिमिइं रमतां पयनेउरी । कलकलइ करि कूकण केउरी । नवनवी परि ऊपरि केलवइ । रमण- मन माणिणि हेलवइ ॥ २४
हिव अवसर लाधउ, चीतव्यां काज साधउ । सयरु सयरि सांधउ, प्रेमना पाश बांधउ ॥ २५ मयणु घण जगावइ, देहु दीठी सुहावइ । सुरत समय भावइ, सानसिउं शीघ्र आवइ ॥ २६ तृणह तुलि गिणावइ, सा भलेलं भणावइ ।
अवगुण न सुणावइ, प्रीति नारी जणावइ ॥ २७ गलि निगोदर तोडर मालती । कुरल कुंतल कोमल पालती । तिहि विमासण वासण ऊपनी । झटकु लइ उरि लागीय मानिनी ॥ २८
कुच परिसरि फेरी, रोमराजी सु सेरी । मयणु जल भलेरी, पाणि गिउ नाभिवेरी । जघनु जलि गलीजइ, तेतलइ देहु भीजइ ।
वसनु परिहरीजइ, कांत संयोगि रीझइ ।। २९ सुख सारवार हिव एक गई । सुविचारि नारि मुझ संगि हुई। नव नेह छेहु न लहुं किमई । दय देव सेवक सदा तिमई ॥ ३०
मलीय माण तणी परि मई घणउं । नहीय रोसु करुं तिहिं भामणुं । कनक जेम घणी परि सिउं कसी । सवि हु भावि सरिषी(खी)य ते तिसी ॥ ३१ लेष(ख)इ लागइ वर्ष ते मास दीहा । बेला वारू यामिनी ते सलीहा । सा सारंगी संगि शय्यां सुखावइ ।
साचई सारूया रमूं वार भावइ ॥ ३२ पीन पर्वत पयोधर शृंगा। हार तार विमला वर गंगा । कांत पाणि तहिं यात्रिकु आवइ । पाप ताप तिणि तीर्थ हरावइ ।। ३३ मदन मंडल कुंडल जाणीइं । मुषि(खि) मयंकु कपोल वषा(खा)णीइ । दशनि दाडिमनी किरि ए कुली । अधरि पल्लव विद्रुमनी रुली ॥ ३४
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