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अंक १]
भंगार शत [२१५ हिव हसइ विहसइ उरि उल्हसइ । मुखि ससइ निससइ उरि उद्वसइ । क्षणु रोअइ न सुअइ विरहाकुली। रमणि झायइ थायइ आकुली ॥ ११ कमलने दलि सीतल साथरउ । कहवि कोमल पत्र म पाथरउ । म करि सूकडि मूंकडि टूकडी । दयितु मेलि न हेलि न वापडी ॥ १२ मुझ समाधि जबादि करइ नहीं। विविध दूषण भूषण हे सही। हिव म वीजिसि वाउ सुसीयलु। किमइ देखिसु एकु सु कूअलु ॥ १३
नं नं भणंती नव नेह लाजइ । धंधूणती बे कर चूडि वाजइ । परहु परहु धूरत मुंचि मुंचि । स्वामी स चुंबी कर बैउ वंचि ॥ १४ पाछइं रहीनइ प्रिय आंखि मीची । किसिउं करूं धूरत ईणि वंची। न छूटीइ माडीय एह आगइ । वली वली मूंइ हु अंगि लागइ ॥ १५ आज सेज रजनी प्रिउ आविउ । सुकिना मुझ रोस कराविउ । रूसणं कपटि मई जव मांडी । तेतलई गिउ नीसत छांडी ॥ १६ चक्रवाकु सु विमासण बइठउ । पश्चमाचलि चडिउ रवि दीठउ । वल्लभा विरह तां हिव होसिइ । एकलां शयनि रात्रि न जासिइं॥१७
माथइ घडूलउ करि नीर चाली । ऊतावली तूं मुझ नेहसाली । पाणी चलू जु पुण एक पायइ । घणा दीहाडा त्रिस तोइ जाइ ॥ १८ वछेदि छोडउ कडिसूत्र फाली । रंभा सुजंघायुगली सुंआली। संभोग संतापु जिस्य विलीजइ । स्वेच्छां समाधिई मननी रमीजइ ॥१९
* आज आलस म माणिणि मोडउ । कांचूआ कसण प्राणि मत्रोडउ । ढोलिसिइं अमीयना कुचकूपा । आलि हाथि सरसा नर लांपा ॥ २० भमरडउ भमउ नवि ऊभजइ । कमलनी वरला वर सिउं भजइ । अम तु हिव नेह न मंडीइ । सुभग नीरसु छोडी छंडीइ ॥ २१ लहकती सिरि सामल वीणडी । झलहली अनु ऊपरि राष(ख)डी। किरि भुजंगम संगम साधरइ । सुरत मंदिरि दीवडलु डरइ ॥ २२ महमहिउ मलयानिलु माल्हतु । मधुर मांजरि चूत चलावतु । सरलु कोकिल पंचम आलवइ । विरहिणी विरहानलु जालवइ ॥ २३
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