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________________ वर्ष ] श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [११ लिये उनके आगे सन्दिग्ध भावसे या द्विअर्थी शब्दोंसे बातचीत करना चाहता, तो उसका वास्तविक मनोभाव क्या है, इसको वे झट पकड लेते और उसको उसका स्पष्ट उत्तर दे देते । तर्क और दलील में वे बड़े बड़े वकील और बेरिस्टरोंको मात कर देते थे । उनके साथ स्नेह-सम्बन्ध स्थापित होनेमें न केवल उनकी उदारता ही मुख्य कारण बनी थी, परंतु उससे कहीं अधिक उनकी सुरुचि, संस्कारप्रियता और बुद्धिकी तेजस्विता उसमें कारणभूत बनी थी । head मेरा प्रत्यागमन और जेलनिवास इस तरह शान्तिनिकेतनमें 'सिंधी जैन ज्ञानपीठ' की स्थापनाका कार्यक्रम बना कर मैं वहांसे फिर पटना गया । वहाँका कार्य समाप्त होने पर फिर अहमदाबाद अपने निवास स्थान पर पहुंचा । 1 उसी बीच में, महात्माजीने देशके सामने अपना वह ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह का कार्यक्रम उपस्थित किया और मार्च महिनेकी ता. १२ को, अपने चिर स्थापित सत्याग्रह आश्रमका त्याग कर, उन्होंने “दांडी कूच" की। इससे सारे गुजरात में बडी हलचल मच गई । सैंकडों ही सत्याग्रही नमक सत्याग्रह में भाग लेनेके लिये गुजरातके गांव गांव से तैयार होने लगे । सरकार भी उन सत्याग्रहियों को शिक्षा देनेके लिये पूरी तरह कटिबद्ध हो गई । 'धारासणा' का नमकका सरकारी अड्डा सत्याग्रहियों की मुख्य आक्रमणभूमि बनी । गुजरातके प्रायः सब ही उत्साही और मुख्य मुख्य सेवक इस सत्याग्रह में सम्मीलित हुए । महात्माजीके एक छोटेसे अनुगामीके रूप में, मैंने भी अहमदाबादकी केन्द्रीय कार्यसमितिके आदेशानुसार, चुने हुए ७५ स्वयंसेवकों के एक बडे दलके साथ, धारासणाके सत्याग्रही दुर्गको सर करनेके लिये विजयी प्रस्थान किया । अहमदाबादकी जनताने बड़े भारी समारोहके साथ हम सत्याग्रहियोंका प्रस्थान मंगल किया । कोई ५० हजारसे भी अधिक जनता हमें अहमदाबादके स्टेशनपर पहुंचाने आई | अहमदाबाद से रातको ९ बजे गुजरात मेलसे हम रवाना हुए । गाडीके चलने पर, १५-२० ही मिनीट बाद, एक छोटेसे स्टेशन पर मेलट्रेनको खडा किया गया और एक पुलीसकी बडी भारी पार्टी, जो हमारे डिब्बेके पीछे एक स्पेशल डिब्बा जुडवाकर हमारे साथ आ रही थी, उतर आई और उसने हम सबको गिरफ्तार कर वहीं जंगलमें गाडीसे नीचे उतार दिया। फिर उसी छोटेसे स्टेशन पर, सारी रात बडे चोकी पहरेके नीचे हमको बिठाया गया। दूसरे दिन 9 बजे वहीं पासहीमें, एक मामूली से किसीके बंगले में, कोर्ट बैठी, और मेजिस्ट्रेटने - जो हमारे किसी समय शिष्य भी रह चुके थे- हमारे स्टेटमेंट ले कर, आधेघंटे में हमको ६ महिनेकी कडी सजा सुना दी । मेरा कुछ व्यक्तित्व खयाल कर मेजीस्ट्रेटने मुझे 'ए' क्लास दे दिया । उस रातको, फिर उसी गुजरातमेलसे, उसी स्टेशन पर गाडीमें बिठा कर, पुलीसके पक्के बंदोबस्त के साथ हमें बंबई की 'वरली चॉल ' की कामचलाउ जेलमें रखने के लिये रवाना किया । कुछ दिन बाद मेरी बदली वहांसे नासिक - सेंट्रल जेल में की गई । इस जगह मुझको 'ए क्लास' के वॉर्ड में रखा गया जहां पर, स्वर्गस्थ श्री जमनालालजी बजाज, तथा कर्मवीर श्री नरीमान, डॉ. चोकशी, श्री रणछोड़भाई सेठ, श्री मुकुंद मालवीय आदि हम ७-८ व्यक्ति एक साथ रहा करते थे । जेलमें मैंने अपना जर्मन भाषाका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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