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प्रीतिविषयक केटलांक प्राचीन भाषा सुभाषितो
[लगभग च्यार सो करतां वधारे वर्ष उपर लखेलां एक प्राचीन पत्रमाथी
आ दुहाओ संगृहीत करवामां आव्या छे. -संपादक] पहिली प्रीति वल्गइ करि, पछइ करइ कुरंग। तिनस्यउ जनम न बालीइ, बहुडि न कीजइ संग ॥१ विरह विच्छिन्ना जे मिलइ, जाणे केहा नेह । जाण तिसाया माणसा, जांगलि वूठा मेह ॥२ लागी प्रीति सुजाणस्युं, वरजइ लोक अयाण। तेहस्यउ पंच न तोडीइ, जेहस्युं जीव पराण ॥३ नयण ति दिठइ कवण गुण, जा नवि अंग मिलति । गयणह जलहर ऊनयउ, जइ सरवर न भरंति ॥ ४ नयण न होही ए सही, ए अणयाली भालि। जिहकउ मारियउ रसीयडउ, बली न सकइ बालि ॥५ जुषण समइ न जण कियु, सुगुणह सेती नेहु । तिणि वनि केरे फलह जिउ, अहलउ गमायु देह ॥६ सगुणह सेती नेह करि, जुवण सीचइ कांइ । इहु जुधण दिन दिन खिसइ, आयु घटइ तनु जाइ ॥ ७ गोरी गरव न कीजही, जुवण अथिर अयाण । साजण जंपइ नेह करि, मननी रलीया माणि ॥ ८ बोलाव्या बोलइ नही, नयणह नह जोवंति । तिण निरसणस्यउ पीयडी, सजण जन न करंति ॥९ म करिसि गोरी गारवउ, म करिसि यौवन आस । केसू फूल्या दिवस दुइ, झंषर हुआ पलास ।। १० आसा देई मन हरइ, मन दे तोडइ आस । मूआ न तेहकउ रोईइ, जीवत न बइसीइ पासि ॥११ नीठुर सरिसउ नेहडउ, म करि हीया गमार। गादह लांषी गूण जिम, वलीय न कीधी सार ॥ १२ गोरी तेहवा मित्त करि, जेहवा सोहइ पासि । वर बधनामी सिरि चडइ, लोक कहइ साबासि ॥१३ साजण दुजण वातडी, ताणी नेह म तोडि । कातणहारी सूत जिउ, साधी साधी जोडि ॥ १४ साम्हउ जोइ वाल्हही, नयणे मेलइ तार । बिहुँ लज्जालू माणसां, दइ मेलउ करतार ॥ १५
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