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कवि आसिग कृत जीवदया रास [२०९ अट्ठावइ रिसहेसरु वंदहु । कोडि दिवालिय जिम चिरु नंदहु । सित्तुज्जहं सिहरिहिं चडिवि, अचउं सामिउ आदिजिणिंदु ।
आबुइ पणमउ पढमजिणु, उम्मुलइ भवतरुवरकंदु ॥ ४६॥ उजिलि वंदहु नेमिकुमारु । नव भव तिहुयणि तरहि संसारु ।
अंबाइय पणमेहु जण, अवलोयणा सिहरि पिक्खेहु । विसम तुंग अंबर रयणा, वंदहु संवु पर्जुनइ वेउ ॥ ४७ ॥ थुणउ वीरु सच्चउरहं मंडणु । पावतिमिर दुहकम विहंडणु ।
वंदउ मोढेरानयरि, चडावल्लि पुरि वंदउ देउ ।
जे दिट्ठउ ते वंदियउ, विमलभावि दुइ करजोडि ॥ ४८ ॥ वाणारसि महुरह जिणचंदु । थंभणि जाइवि नमहु जिणिंदु ।
संखेसरि चारोप पुरि, नागद्दहि फलवद्धि दुवारि । वंदहु सामिउ पासजिणु, जालउरा गिरि 'कुमरविहार' ॥ ४९ ॥ कासु वि देह हडइ दालिदु । कासु वि तोडइ पावह कंहु ।
कासु वि दे निम्मल नयण, खासु सासु खेयणु फेडेई ।
जसु तूसइ पहु पासजिणु, तासु घरि नव निधान दरिसेइ ॥ ५० ॥ वाला मंत्रि तणइ पाछोपइ । वेहल महिनंदन महिरोपइ ।
तसु सखहं कुलचंद फलु, तसु कुलि आसाइतु अच्छंतु । तसु वलहिय पल्लीपवर, कवि आसिगु बहुगुण संजुत्तु ॥५१॥ सा तउपरिया (?) कवि जालउरउ । माउसालि सुंमइ सीयलरउ ।
आसीद वदोही (?) वयण, कवि आसिगु जालउरह आयउ ।
सहजिगपुरि पासहं भवणि, नवउ रासु इहु तिणि निप्पाइउ ॥५२॥ संवतु बारह सय सत्तावन्नइ । विक्कमकालि गयइ पडिपुंनइ ।
आसोयहं सिय सत्तमिहिं, हत्थो हत्थिं जिण निप्पायउ । संतिसूरि पयभत्तयरियं, रयउ रासु भवियहं मणमोहणु ॥ ५३ ॥
॥ इति जीवदया रास समाप्तः॥
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३.१.२७.
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