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________________ भाष्यकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणनो सुनिश्चित समय [संपादकीय लेख] विशेषावश्यक भाष्यादि महान् ग्रन्थोना प्रणेता युगप्रधानावतार आचार्यवर्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणना प्रादुर्भावना समय विषे आज सुधीमां कोई सुनिश्चित उल्लेख प्रसिद्धिमां आव्यो नथी । श्वेतांबर संप्रदायनी केटलीक पाछली पट्टावलियोमा एमना स्वर्गवास विषेनो उल्लेख. मळी आवे छे जे वि. सं. ६४५ नी आसपासनुं सूचन करे छे. _ लगभग वीसेक वर्ष पहेलां ए क्षमाश्रमणनी एक विशिष्ट ग्रन्थकृति नामे 'जीतकल्पसूत्र'नी, चूर्णि आदि साथेनी एक आवृत्ति में संपादित- प्रकाशित करी हती जेनी प्रस्तावनामा एमना समय विषे केटलोक ऊहापोह को हतो अने तेना उपसंहारमा सूचव्यु हतुं के “खास कांई विरोधी प्रमाण नजरे न पडे त्यां सुधी पट्टावलियोमा जे वीर संवत् १११५-विक्रम संवत् ६४५ नी साल एमना माटे लखेली छे तेनो स्वीकार करीए तो तेमां कशी हरकत नथी." (जुओ, जीतकल्पप्रस्तावना, पृ० १६) पण हवे मने एमना समय विषेनी एक सुनिश्चित मिति मळी आवी छे अने ते अनुसार एमनो खर्गवास वि. सं. ६४५ मां नहीं पण ६६६ पछी क्यारेक थएलो होवो जोईए - एटले के विक्रमना ७मा सैकानी ४ थी पचीसी एमना अवसानकालमाटे निर्धारित करवी जोईए । ए सुनिश्चित मिति ते एमना ज महान् ग्रन्थ विशेषावश्यकभाष्यनी जे एक प्राचीनतम प्रति जेसलमेरना सुप्रसिद्ध ग्रन्थ भण्डारमा मारा जोवामां आवी छे तेनी अन्ते लखेली मळी आवी छे. सन् १९४२ना दीसंबर मासमां, ज्यारे हुं जेसलमेरनो भंडार जोवा केटलाक साथियोने लईने त्यां गयो त्यारे ए भंडारमा सुरक्षित एवा अनेकानेक प्राचीन ताडपत्रीय ग्रंथोनी प्रतियोर्नु अवलोकन करती वखते अकस्मात् ज मने ए प्रतिने जोवानी घटना बनी गई। अकस्मात् एटला माटे के ए भंडार जोवानो प्रारंभ कर्यो ते वखते तो में प्रथम जे अलभ्य - दुर्लभ्य ग्रंथोनी प्रतियो हती तेज खास जोवानी धारणा राखी हती. कारण शुरुआतमां तो ए भंडारनी समस्त प्रतियो जोवानी अने तपासवानी संपूर्ण अनुकूलता अने स्थिरता मने प्राप्त न हती. तेथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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