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________________ अंक १] बुद्ध अने महावीरनुं निर्वाण [ १८७ पाथी पाछळथी मात्र वृजिओनो ज नहि पण पेला १८ गणराजाओना एकत्र समूहनो पण भय रहे. आथी पूर्व तरफथी हुमलो लई जवामां तेने वधारे सफळ थवानी आशा जणाई. १५. कणिकनी युद्ध योजना वृजिओना प्रदेशनी अने वैशालीनी पूर्व बाजुए विदेहोनी भूमि आवी हती-जेनी राजधानी मिथिला हती. कूणिकने मातृपक्षे विदेहोना राजा साथे अंगत सगाई संबंध हतो. ते पोताने विदेहपुत्र (जुओ ६१३), बौद्ध आगम प्रमाणे वैदेहीपुत्र (जुओ७) कहेवडावतो. आ ऊंची जातना सगाईना संबंधथी एनी शाख वधी हती एम लागे छे, कारण के तेथी तो ते तेने पोताना एक उपनाम तरीके वापरतो. आथी विदेहो एना रस्तामा अडचण उभी करशे एवा भयनुं एने कारण न हतुं. कूणिक मगधनी जूनी राजधानी राजगृहमा रहीने ईप्सित युद्धने दोरी न शके एटले एणे पोतार्नु रहेठाण मगधना पूर्व तरफना प्रांत अंगना मुख्य शहेर चंपामा राख्यु. अंग घणा वखतथी-जरूर अजातशत्रुना पिता सेणिय बिंबिसारना वखतथी-ते मगध साम्राज्यमां उमेरी लेवामां आव्यु हतुं. आम मानवानुं कारण ए छे के एक वखत बुद्धे ज्यारे चंपामां वास को हतो त्यारे एमने एक उच्च कोटिनो ब्राह्मण - सोणदण्ड - मळवा आव्यो हतो; जे बिंबिसारदत्त 'राजदाय' - 'ब्रह्मदेय्य' भोगवतो हतो. जैनोना मत प्रमाणे कूणिके पोताना राज्याभिषेक पछी तरत ज पोतार्नु रहेठाण चंपामा राख्युं हतुं; कारण के औपपातिक सूत्र (जैनोनुं प्रथम उपांग)मां चंपाना पूर्णभद्र चैत्यमां महावीरना एक समवसरण उपरर्नु अने ते प्रसंगे कूणिकनी पोतानी समस्त सैन्यसामग्री साथनी धामधूम भरी सवारीनुं विस्तृत वर्णन आपवामां आव्युं छे. आ प्रसंगना विस्तृत वर्णनने, जैनागमोना संग्राहको, आवा अन्य बधा प्रसंगो माटे एक नमुनारूपे लेता आव्या छे. औपपातिकसूत्रमाथी अमुक भागना मात्र प्रतीक आपी आ बाबत बधे नोंधवामां आवे छे. अने वण्णओ वडे तेने निर्दिष्ट करे छे. कूणिकनुं चंपामां महावीर साथेनुं मिलन जैनो माटे केटला विशेष अर्थवाळु हतुं ए आ उपरथी समजाय छे. १६. वैशाली माटेनुं युद्ध .. आ युद्ध केवी रीते शरु करवामां आव्यु ते विषे जैनोना निरयावली सूत्रमा एकदम बुद्धिगम्य वर्णन आपवामां आव्यु छे. भा विषयमां आपणे प्रवेश करीए ते पहेलां, आपणे ए चोकस करीए के जैन परंपराए मुख्य व्यक्तिओने अन्यप्रकारे सगाई संबंधथी वर्णवी छे. अनेक उपनामो उपरथी मालुम पडे छे के जे वडीलो हता ते विदेह तरफनां हता. महावीरनी माताने विदेहदिन्ना, तेमने पोताने विदेहदिन्ने अने विदेहजच्चे, ३ १ आ वर्णनमा अत्यंत अर्थपूर्ण एक बनावनी मात्र यादगीरी ज साचववामां नथी आवी, पण ते वार्ताना वस्तुनो साचो आधार पण बने छे. एटले अहिं पण कूणिकनुं राज्यनी शरुआतमांज चंपामा रहेठाण बदलवानी बाबतनो स्वीकार थयो छे. २ कल्पसूत्र, जिनचरित ६ १०९ ३ तेज स्थळे ११० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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