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________________ १७४] भारतीय विद्या [वर्ष ३ धम्) पाठ पुनरुक्त जेवो होई अनर्थक छे. आवे स्थळे पाठो निर्णीत करवामां टीकागत अर्थने लक्ष्यमा राखवो जरूरी छे. वळी, "तुण्हिजइ णव सद्द खणु" ए पाठ टिप्पनने बराबर अनुसरे छे एटले ए ज विशेष ग्राह्य लेखावो जोईए. मूळमा जे "णिमिसिद्ध" पाठ छे ते, मने लागे छे के "खण्ड" पद ऊपरनी टिप्पनी जेवो छे. कोई वांचनारे 'खणु' पद उपर निमेषार्धम् - "णिमिसिद्ध" एवी समझति प्रतिनी भाजुबाजुना कोरा भाग ऊपर टपकावी होय अने तेने पछीथी मूळपाठ रूपे घणी वार लिपिकरनारा असमजथी लई ले छे अने आ रीते पण ग्रंथमा घणां पाठांतरो जन्मे छे. गा० २२१ (तृतीय प्रक्रम) मां मूळमां 'अच्चरियं' पाठ छे. पाठांतर 'अहिययरं' छे. टिप्पनकार अने अवचूरिकाकार बन्ने अहिययरं-अधिकतरम् पाठने अनुसरे छे त्यारे 'अञ्चरियं' पाठ जुदो ज पडी जाय छे. संभव छ के 'अच्चरियं' ने बदले 'अचहियं' 'अत्यधिकम्' पाठ होय अने एम होय तो ज टिप्पन अने अवचूरीनो अर्थ संगत थई शके. आ उपरांत टिप्पन अने अवचूरिकामा घणे स्थळे अर्थभेद पण छे. द्वितीयप्रकममा गा० १२१ 'पय जंपई' पद छे तेनो अर्थ टिप्पनकार 'पदानि जल्प' एवो करे छे त्यारे अवचूरिकाकार 'स्वां प्रति जल्पति' एवो करे छे. 'पय' शब्द 'पद' अर्थने तथा 'स्वाम्' अर्थने एम बन्ने अर्थने जणावे छे तथा प्रति' अर्थने पण सूचवे छे. अहीं अवचूरिकाकारनो अर्थ विशेष संगत छे. आ प्रमाणे घणे स्थळे टिप्पनकार अने अवचूरिकारकार वचे अर्थभेद थयेलो छे अने त्यां विशेष विचारीने जोतां मने अवचूरिकाकार वधारे विश्वस्त जणाया छे. केटलेक स्थळे लिपिकारे जे अशुद्ध लखेलुं छे तेवो ज पाठ मुद्रणमां जळवायो छे. द्वितीयप्रक्रम गा० ९७ मूळ 'गुणसह उत्तहि' छे. टिप्पनमा तथा अवचूरिकामा 'गुणशब्दोऽनस्तया' छे. अहीं 5 अवग्रह लिपिकारना प्रमादर्नु फल छे. 'गुणशब्दोबस्तया' पाठ बराबर मूळानुसारी छे. ए ज प्रमाणे द्वितीयप्रक्रम गा. १०० मा मूळमां 'मुणंती' ए क्रियातिपत्तिर्नु क्रियापद छे. अवचूरिकामा तेनो 'अज्ञास्यन् (म्) एवो स्पष्ट अर्थ छे त्यारे टिप्पनमा 'अज्ञास्यम्' लखवाने बदले लिपिकारे 'सौख्यं मन्यास्यम्' एबुं भ्रांत लखेलुं छेखरी रीते 'सौख्यम् अज्ञास्यम्' एम होवू जोईए. अहीं लिपिकारे 'ज्ञा'ने बदले 'न्या' लखेलो छे अने मुद्रणमां पण ते ज कायम छे. आ विशे अहीं वधोरे लखवानी अपेक्षा नथी परंतु पाठांतरो उक्त रीते पृथक्करणपूर्वक लेवानी प्रथा स्वीकाराय तो ग्रंथनी स्पष्टतामा विशेष अनुकूळता थशे एवो मारो नम्र अभिप्राय छे. प्राचीन प्रतिओने प्राधान्य आपवा करतां ज्यां टीका के विवरण होय त्यां पाठांतरोना निर्णयमा टीका अने विवरणना अर्थने पण आधाररूपे लेखवो जोईए अने तेम करी बधां पाठांतरोनुं उक्तरीते वर्गीकरण करवानें कार्य संपादकोना ध्यान बहार न रहेदूं जोईए. * * अमे कया धोरणे प्रस्तुत ग्रन्थना पाठो संगृहीत कर्या छे तेनी चर्चा ग्रन्थनी अमारी प्रस्तावनामां करवामां आवेली छे तेथी अहिं तेनो खुलासो आवश्यक नभी. .-संपादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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