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________________ अंक १] कवि अब्दुल रहमानकृत सन्देशरासक [१७३ मुद्रित रासमां पाठांतरो आपवामां आवेलां छे तेमा प्रतोनां संकेतो ABC एम राखेला छे ए ऊपरथी तेमांत्रण प्रतोनो उपयोग थयो होय एम लागे (१०) छे. जे पाठांतरो शब्ददृष्टिए, अर्थदृष्टिए शुद्ध होय ते बधां लेवा योग्य रासनां पाठा- छे; परंतु जे भाषाना इतिहासमा खप लागे तेवां होय, तेषां पण लेवां .तरो अने प्रतो जरूरी छे. केटलांक पाठांतरो मूळ करतां जुदो अर्थ अने केटलीक वार विपरीत अर्थ बतावनारां होय छे तेने पण लेवां जोईए एम मारं मानवु छे, वळी, जे ग्रंथो टीका के विवरणवाळा होय तेवा ग्रंथोमां एक त्रीजी जातनां पण पाठांतरो मळवानो संभव छे. तेवा ग्रंथोमा टीकामां के विवरणमा मूळनो अर्थ आपेलो होय छे अथवा मूळपाठनुं प्रतीक लीधुं होय छे. पाठांतरोनुं पृथक्करण करती वेळा जे पाठांतसे टीकागत अर्थने अनुसरनारां होय तेने जुदा तारववां जोईए अने जे पाठांतरो मूळना प्रतीक अने मूळपाउना भेदमांथी नीपजेलां होय तेने पण जुदा पाडवां जोईए. आ रीवे पृथक्करण कर्या पछी बाकीनां पाठांतरो वधारानां होय ते जुदां दर्शाववां जोईए. एम एकंदर पाठांतरोनां त्रण विभाग करवा जोईए: १ टीकागत अर्थानुसारी के टीकागत अर्थप्रतिकूल. २ मूळपाठप्रतीकानुसारी के मूळपाठप्रतीकप्रतिकूळ. ३ वधारानां. मा रासमा आवां बधां पाठांतरो विद्यमान छे पण विभाग न होवाथी तेनी स्पष्ट खबर पडती नथी. मूळनी प्रतिओ जुदे जुदे वखते जुदा जुदा लेखकोए लखेली होय छे, केटलीक वार तो मूळ ग्रन्थने लेखक (कर्ता) पोते जाते ज लखे छे. आम तेमां पाठांतरो नीपजे छे. टीकाकार सामे जे प्रति होय तेने अनुसारे ते प्रतीक ले छे अने भर्थ पण ते प्रमाणे बतावे छे. एथी टीकागत प्रतीको अने केवळ मूळपाठनी प्रतिओना पाठ वचे पाठभेद उभो थाय छे. जे टीका आपणे छापिए छिए ते टीका, टीकाकारे आपणा छापेला मूळ पाठवाळी प्रतिने ज आधारे लखेली होय तो तो प्रतीकोमा अने मूल पाठ वच्चे पाठभेद भाग्ये ज होय परंतु तेम न होय त्यारे एवो पाठभेद अवश्य रहेवानो. वळी केटलीक वार केवळ टीकानी ज प्रतो जुदी मळे छे एटले उक्त पाठभेद रहेवानो ने रहेवानो ज. आ रासमां पण जे जातनां पाठांतरोना विभाग विशे आगळ जशाग्युं छे तेवां पाठांतरो उपलब्ध छे. तेनी संक्षिप्त यादी आ प्रमाणे छः द्वितीयप्रक्रमनी ९० मी गाथामां मूल पाठ आ प्रमाणे मुद्रित छे - "निवडंत बाहभर लोयणाइ धूमइण सिचंति" ९०. आ स्थळे 'धूमइण' ने बदले 'धू जइ ण' एवो पाठभेद छे. आ स्थळे अवचूरिकाकारे बतावेलो अर्थ बराबर पाठांतरने अनुसरे छे त्यारे टिप्पनकार मूळ छापेल पाठने अनुसरे छे. अर्थना सौष्ठवनो विचार करीए तो टिप्पनकार करतां अवचूरिकानो अर्थ विशेष विशद अने संगत छे. प्रथम प्रक्रमनी १९ मी गाथामां "मणु मुणेवि किंचिय पयासिउ" एवो पाठभेद छे. आ पाठने अवचूरिकाकार नथी अनुसरतो किंतु टिप्पनकार अनुसरे छे. अवचूरिकाकार तो मुद्रित पाठ प्रमाणे अर्थ बतावे छे. . एज गाथामां "णिमिसिद्धु खणु" एवो पाठ मुद्रित छे त्यां टिप्पनमा अने अवचूरिकामा तेनो अर्थ "निःशब्दम्" आपेलो छे. आ अर्थ जोतां मूळमां "निसई" पाठ होवो जोईए. वळी, मूळमां "खणु" शब्द तो छ ज एथी "णिमिसिद्ध" (निमेषा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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