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________________ वाचक उमाखातिका सभाष्य तत्त्वार्थसूत्र और उनका सम्प्रदाय ले०-श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमी पहला संस्कृत जैन सूत्रग्रन्थ । आचार्य उमास्वाति वाचकका जैनसाहित्यमें एक विशेष स्थान है। संभवतः वे ही पहले विद्वान् हैं जिन्होंने विविध आगम-ग्रन्थों में बिखरे हुए जैन तत्त्वज्ञानको, योग, वैशेषिक आदि दर्शन-ग्रन्थोंके समान संस्कृत सूत्रबद्ध जैनशास्त्रके रूपमें प्रथित किया और उसे तत्त्वार्थाधिगम या अर्हत्प्रवचनके रूपमें उपस्थित किया । इसके पहले प्रायः सारा जैन वाङ्मय अर्धमागधी प्राकृतमें था। उन्हींने शायद सबसे पहले यह अनुभव किया कि अब संस्कृतकी प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई है, विद्वत्समुदायकी प्रधान भाषा वही बन रही है, इसलिए जैन दर्शनकी ओर उसका ध्यान तभी जा सकेगा, जब कि उसे संस्कृतमें लिखा जाय। चूंकि वे ब्राह्मणकुलमें पैदा हुए थे और इसलिए इस भाषामें ग्रन्थ-निर्माण करना उनके लिए सहज भी था । जिस तरह पाली पिटकोंमें बिखरे हुए तत्त्वज्ञानको संग्रह करके आचार्य वसुबन्धुने संस्कृतमें 'अभिधर्म कोश' की रचना की और उसपर स्वोपज्ञ भाष्य लिखा, उसी तरह उमाखातिने प्राकृत आगम-साहित्यपरसे संग्रह करके तत्त्वाधिगम सूत्र और खोपज्ञ भाष्यकी रचना की। १-प्रायः कहनेका कारण यह है कि तत्त्वार्थसे भी पहले संस्कृतमें थोड़े बहुत जैन वाङ्मयकी रचना हो गई थी। तत्त्वार्थ-भाष्यमें भी कुछ संस्कृतके उद्धरण दिये हुए हैं। देखो, अध्याय १, सूत्र ३५ का भाष्य। २-शुङ्ग राजवंशके कालमें ब्राह्मणधर्मका पुनर्जागरण हुआ और तब राज्याश्रय पाकर संस्कृतका भी भाग्य चमका । उसी समय पतंजलिका पाणिनि व्याकरणपर महाभाष्य लिखा गया। गृह्यधर्म श्रौतसूत्रोंका रचना-काल भी यही है । महाभारतका संस्करण भी तभी हुआ। ३- आगे बताया गया है कि उमास्वाति योग-सूत्रों और शायद उसके भाष्यसे भी परिचित थे। ४- काशी विद्यापीठने 'अभिधर्मकोश' प्रकाशित किया है। यह तत्त्वार्थकी ही शैलीपर रचा गया है। इसमें ९ अध्याय हैं। ५-देखो, मुनि आत्मारामकृत 'तत्त्वार्थसूत्र-जैनागमसमन्वय'। इसमें जैनागमोंके वाक्यों और तत्त्वार्थ-सूत्रोंकी समानता दिखलाई गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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