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________________ १४] भारतीय विद्या [वर्ष ३ गतिमानथ चाक्रियः पुमान् कुरुते कर्म फलैन युज्यते । फलभुर च न चार्जनक्षमो विदितो यैर्विदितोऽसि तैर्मुने । इसमें विभावना, विशेषोक्तिके द्वारा आत्म-विषयक जैन मन्तव्य प्रकट किया है। किसी पराक्रमी और विजेता नृपतिके गुणोंकी समग्र स्तुति लोकोत्तर कवित्व पूर्ण है । एक ही उदाहरण देखिए एका दिशं व्रजति यद्गतिमद्दतं च तत्रस्थमेव च विभाति दिगन्तरेषु । यातं कथं दशदिगन्तविभक्तमूर्ति युज्येत वक्तुमुत वा न गतं यशस्ते । * - आद्य जैन वादी दिवाकर आध जैन वादी हैं । वे वादविद्याके संपूर्ण विशारद जान पड़ते हैं, क्यों कि एक तरफसे उन्होंने सातवीं वादोपनिषद् बत्तीसीमें वादकालीन सब नियमोपनियमोंका वर्णन करके कैसे विजय पाना यह बतलाया है तो दूसरी तरफसे आठवीं बत्तीसीमें वादका पुरा परिहास भी किया है। __दिवाकर आध्यात्मिक पथके त्यागी पथिक थे और वाद कथाके भी रसिक थे। इसलिए उन्हें अपने अनुभवसे जो आध्यात्मिकता और वाद - विवादमें असंगति दिख पड़ी उसका मार्मिक चित्रण खींचा है । वे एक मांस-पिण्डमें लुब्ध और लड़नेवाले दो कुत्तोंमें तो कभी मैत्रीकी संभावना कहते हैं, पर दो सहोदर भी वादियोंमें कभी सख्यका संभव नहीं देखते । इस भावका उनका चमत्कारी उद्गार देखिये ग्रामान्तरोपगतयोरेकामिषसंगजातमत्सरयोः । स्यात् सौख्यमपि शुनोत्रोरपि वादिनोर्न स्यात् ॥ ८, १. वे स्पष्ट कहते हैं कि कल्याणका मार्ग अन्य है और वादीका मार्ग अन्य; क्यों कि किसी मुनिने वाग्युद्धको शिवका उपाय नहीं कहा है । अन्यत एव श्रेयांस्यन्यत एव विचरन्ति वादिवृषाः । वाक्संरंभं कचिदपि न जगाद मुनिः शिवोपायम् ॥ आद्य जैन दार्शनिक व आद्य सर्वदर्शनसंग्राहक दिवाकर आध जैन दार्शनिक तो है ही, पर साथ ही वे आद्य सर्व भारतीय दर्शनोंके संग्राहक भी हैं । सिद्धसेनके पहले किसी भी अन्य भारतीय विद्वान्ने संक्षेपमें सभी भारतीय दर्शनोंका वास्तविक निरूपण यदि किया हो तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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