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________________ ८] भारतीय विद्या [घर्ष ३ भीतर 'छिपाये हुये हैं, मगर अभी उन्हें एकत्रित करनेका प्रयत्न नहीं किया गया । पालीकी ऐसी सामग्रीको डाक्टर मलालशेखर और डाक्टर विमलाचरण लाहाने एकत्रित किया है, मगर जैन आगमोंके बारेमें उस तरहका कोई विस्तृत नामकोश (सबिवरण) तैयार नहीं हुआ। पावा- उक्त गणिजीने अपने ग्रंथमें कितने ही तत्कालीन भौगोलिक नामोंका आधुनिक परिचय दिया है। पाली पिटक और जैन आगम अधिकतर एक ही समकालीन भौगोलिक स्थानोंका वर्णन करते हैं, इसलिये उनके तुलनात्मक अध्ययनसे हम ज्यादा सत्यके समीप पहुँच सकते हैं; जैसा कि गणिजीने महावीरकी जन्मभूमिको वैशाली (आधुनिक बलिया-बसाढ, जिला मुजफ्फरपुर) निश्चित करके किया है। किन्तु पावाके बारेमें अब भी उसी मगधकी आजवाली पावापुरीका समर्थन कर रहे हैं। मल्लगण (सारन, गोरखपुर जिले) में ही वह पावा थी, यह बात तो उनके इस वाक्यसे भी साफ हो जाती है 'उस समय [पावाके] राजा हस्तिपालके रज्जुग-सभाभवन [-संस्थागार] में भगवान् महावीरकी अन्तिम उपदेश सभा हुई, जहाँ अमेक गण्यमान्य व्यक्ति सम्मिलित हुये थे, जिनमें काशी-कोशलके नौ लिच्छवी तथा नौ मल्ल एवं अठारह गणराज विशेष उल्लेखनीय हैं।' यदि भगधकी पायामें यह बात हुई होती तो वहाँ मगध या गंगाके दक्षिणके दूसरे राजाओंके आनेका जिक्र होता । काशी-कोशल, मल्ल और लिच्छवी राजाओंका नाम बता रहा है, कि पावा गंगाके दक्षिणमें नहीं उत्तरमें थी, और वह मल्लोंकी ही पावा थी, जिसकी पुष्टि दीर्घनिकायके 'संगीति परियाय तथा 'सामगाम-सुत्तों' से होती है। पीछेकी विशृंखलित जैनपरंपराने जैसे महावीरकी जन्मभूमिको वैशालीसे हटाकर गंगाके दक्षिणमें भेज दिया, वैसे ही निर्वाण-स्थानके बारेमें भी किया। . . काकन्दी-काकन्दीको गणिजी गोरखपुर जिलेके नूनखार स्टेशनके पासका आँखदो मॉब मानते हैं, अर्थात् काकन्दी पुराने मल्लदेशमें थी। किन्तु काकन्दी मुंगेर जिलेका वही काकन गाँव है, जिसे आज भी साधारण जैन गृहस्थ मानते हैं। काकनसे योडी दूर पूरब नदीके दाहिने तटपर अवस्थित कोहरी लोगोंके गाँवमें काकनसे ले जाई गई एक देवीकी मूर्ति है, जिसपर ग्यारहवीं-बारहवीं सदीके अक्षरोंमें काकन्दी लिखा हुआ मौजूद है। - ___-श्री राहुल सांकृत्यायन । ..१ श्रमण भगवान् महावीर, पृष्ठ ३६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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