SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंक १] प्रभाकर गुप्त और उनका भाष्य [७ दूसरी प्रति दानशीलकी है। इसमें प्रायः २२ इंच लंबे तथा दो इंच चौडे २१८ तालपत्र हैं। यह उन पुस्तकोंमें है, जिन्हें शाक्यश्रीभद्र और उनके साथी नालंदा और विक्रमशिलाके भस्म होते विहारोंसे बचाकर अपने साथ ले गये थे। दानशीलने कई जगह इसमें 'दानशीलस्य पुस्तिका' लिखा है, और अक्षरके भेदसे जान पडता है कि इसे तीन अलग अलग हाथोंने लिखा था । पहिले ४७ पत्रे सुंदर अक्षरोंमें लिखे गये हैं, बीचमें (४८-८३) खंडित अंशको शायद दानशील ही ने स्वयं लिखकर पूरा किया, अन्तिम (८४-२१८) पत्रे दूसरे हाथके हैं। प्रज्ञाकर गुप्तका भाष्य साढी सात शताब्दियाँ बाहर रहकर अब आजके भारतमें प्रकाशित होनेके लिये आया है । प्रज्ञाकर गुप्तकी एक पुस्तक 'सहालम्बनिर्णय' (स्तन्-ऽग्युर ११२।१९) का भोट भाषानुवाद उपलभ्य है । भाष्यपर मी जयानन्त (१८ हजार) और यमारि (२६ हजार) की विस्तृत टीकायें तिब्बती भाषामें मौजूद हैं, लेकिन वे मूल संस्कृत रूपमें शायद सदाके लिये नष्ट हो गई हैं। 'शायद' ही कहना होगा, क्योंकि तिब्बतके कोने कोने तथा उसके स्तूपों और मूर्तियोंके उदरकों पूरी तरह ढूँढा नहीं जा चुका है और न हमारे यहाँके जैन भंडारोंकी ही पूरी तौरसे छानबीन हुई है। [नोट- भारतीय विद्या भवनकी ओरसे इस महान् ग्रंथका प्रकाशन करनेके लिये महापंडित राहुलजीने इसे भवनको समर्पण किया है। हम इसके प्रकाशनका कार्य यथाशक्य शीघ्र ही प्रारंभ करना चाहते हैं। -संपादक । ] पावा और काकन्दी जिस समय (१९३० ई.) मैंने 'बुद्धचर्या' लिखी, उस वक्त ख्याल आया था कि इसी प्रकारकी एक 'वर्धमानचर्या' या 'महावीरचर्या' लिखी जाय, जिसमें महावीरके चरितके साथ जैन आगमोंमें प्राप्य तत्कालीन भूगोल, इतिहास, समाजके बारेमें सभी सामग्रीको जमा कर दिया जाय, मगर अभीतक वैसा कोई ग्रंथ नहीं लिखा गया। पंडित कल्याणविजयजी गणि अपने 'श्रमण भगवान महावीर' के लिखनेके वास्ते उस सारी सामग्रीसे गुजरे, मगर उन्होंने सिर्फ धार्मिक भक्त पाठकोंका ख्याल कर उसमेंसे अधिक अंशको छोड दिया; और जिसे इस्तिमाल भी किया, उसे अपने शब्दोंमें करके । इससे उसका ऐतिहासिक मूल्य बहुत कम हो गया । बौद्ध पिटकोंकी भाँति जैन आगम भी बुद्ध-महावीर कालीन उत्तरीय भारतके इतिहास, भूगोल, समाजसंबंधी भारी सामग्री अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy