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________________ ४] भारतीय विद्या [वर्ष ३ अस्मिस्त्वभ्यासमात्राद् यदि भवति परस्तत्र तत्त्वार्थसिद्ध्यै, युक्तोऽस्मिन् पक्षपातः स्वपरमतिरियं युक्त्ययुक्त्योः कृतार्थाः ॥ -ग्रन्थान्ते प्रज्ञाकरने अपने ग्रंथमें जगह जगह जो लौकिक न्याय (मुहावरे) प्रयुक्त किये हैं, उनके कुछ नमूने हैं - . 'मृतेनापि कुक्कुटेन वासितव्यम्' (२।२९७) 'हरीतकी प्राप्य देवता विरेचयिष्यति' (४।११७) 'अन्येन कर्कटिका भक्ष्यतेऽन्यस्य नासाच्छेदक्रिया' (४१७०) 'कर्कटकसधर्माणो हि जनकभक्षा राजपुत्राः' (४।१८१) 'यस्यैव भोजनं तस्यैव भग्नमांडभागिता' (४।१८२) 'सोऽयं इतस्तटर्मितो व्याघ्रः' (४।१९२) 'पततः काशकुशावलम्बनम्' (१।१९७) प्रज्ञाकरका समय-तिब्बती साहित्यमें उल्लिखित भारतपरंपरा प्रज्ञाकरको धर्मकीर्तिके प्रशिष्य तथा देवेन्द्रबुद्धिके शिष्य शाक्यबुद्धिका शिष्य बतलाती है । न्यासकार तथा प्रमाणसमुच्चयटीकाकार जिनेन्द्रबुद्धि भी प्रज्ञाकर गुप्तके गुरुभाई थे। एक दूसरेके खंडनमंडन तथा बौद्ध परंपराके मिलानेसे भारतीय दार्शनिक ईसवी शताब्दियोंमें निम्नप्रकार पाये जाते हैं - सदी पाद बौद्ध जैन १ २ अश्वघोष, मातृचेट २ ३ नागार्जुन ४ आर्यदेव, शंकरस्वामी कणाद अक्षपाद बादरायण, जैमिनिः ईश्वरकृष्ण २ संघभद्र ३ असंग, वसुबंधु विन्ध्यवासी, वात्स्यायन १ बुद्धघोष शबर, माठर व्यास, प्रशस्लपाद देखो मादन्याय (परिविष्ट) ब्राहाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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