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________________ वर्ष] वर्गस्थ सिंघीजीके कुछ संस्मरण [१११ झको संतोष दे सके ऐसा व्यक्ति मुनिश्री जिनविजयजीके सिवाय दूसरा नहीं है । सिंधीजी खुद इतिहास - साहित्य - कलारसिक तथा पुरातत्वप्रिय थे । और मुनिजी उन विषयोंकी जीवितमूर्ति हैं, ऐसा उन्हें मालूम था । फिर तो उन्होंने सारा काम मुनिजीके सुपुर्द करनेका अंतिम निर्णय किया और मुनिजीसे कहा कि 'बडे बाबूजीकी अमुक इच्छा थी, मेरी अमुक इच्छा है, जैन समाजकी और देशकी क्या क्या जरूरतें हैं और हमारी इच्छाके अनुसार उन जरूरतों की पूर्ति किस तरह हो सकती है- यह विचार आप कीजिए। हम उसमें कभी सूचना करेंगे पर काम करना आपके जिम्मे है। मेरे जिम्मे आर्थिक और दूसरे साधन आपकी सेवामें अधिकसे अधिक उपस्थित करना इतना ही है।' ऐसा कह कर बडे बाबूजीकी स्मृतिके निमित्त बोर्डिंग चलाने, सिरीज निकालने आदिका सारा काम मुनि श्री जिनविजयजीको सौंप दिया । और अन्त तक कभी हस्तक्षेप नहीं किया । जब बात होती या मिलते तो यही कहते कि 'मेरे पिताजी की भावना और मेरी इच्छा सिद्ध होती है । और होगी तो सुयोग्य विद्वानोंके द्वारा ही। हम तो जितना अपने जीवन में सदुपयोग करेंगे उतना ही हमारा । सिंघी सिरीज और छात्रवृत्ति देने आदिका काम तो शुरू ही था । पर दूसरा एक प्रसंग ऐसा आया जब उन्होंने अन्य धार्मिक काम करनेका भी सोचा । स्वर्गवासी मुनि मंगलविजयजी उन्हें पावापुरीमें मिले । वे चाहते थे कि हम कुछ काम करें और सिंघीजी मदद करें । बाबूजीने उनकी बात सुन कर कहा कि 'आप साधुलोग ऐसा हलवा-पुड़ी छोडकर कैसे काम करेंगे ?' सिंघीजीका वाक्प्रहार काम कर गया। उक्त मुनिजी और उनके शिष्य दोनों कृतनिश्चय हुए तो सिंधीजीने कहा कि 'अच्छा, हम आपको नियत अमुक आर्थिक मदद करेंगे । आप हजारीबाग जिलेमें सराक जाति जो पहले जैन थी उसके उद्धारका काम शुरू कीजिए । दूसरी मदद भी आ जायगी।' दोनों गुरुशिष्यने उस जिल्लेमें डेरा डाला। सिंघीजी कलकत्ता बैठे बराबर मदद देते रहे और फिर तो दूसरे भी लोग सहायक हो गये। जो काम आज तक भी चलता है । असलमें सिंधीजीकी यह प्रवृत्ति अपने पिताजीकी स्मृतिके निमित्त ही शुरू हुई थी। इसमें सिंधीजीको अपनी माताजी तथा पुत्रोंका भी पूर्ण सहयोग रहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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