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________________ ११०] भारतीय विद्या [तृतीय - चांदी, सोना, लकडी, पत्थर, जौहरात आदिकी अनेक छोटी मोटी चीजें सिंधीजी के द्वारा अपनी कलादृष्टिके अनुसार बनवाई हुई आज भी देखी जा सकती है। मातृ-पितृभक्ति अपने माता-पिताके प्रति सिंघीजीका इतना अधिक आदर था कि ऐसे बड़े और स्वतन्त्र मिजाजके पुत्रोंमें कम देखा जाता है। अपनी इच्छा कुछ भी हो पर वे माता-पिताकी इच्छाको प्रधान स्थान देते थे। बडे बाबूजीका खर्गवास होनेके बाद जब जब मैं गया और देखा तो मेरे देखनेमें यही आया कि वे दुपहरमें नियमसे अमुक घण्टे माताके पास बिताते । कुछ बांचना, उनसे कुछ सुनना, पत्तोंसे खेलना- पर माताको हर तरहसे प्रसन्न रखनेकी चेष्टा करना । ऑफिसमें कितना ही काम क्यों न हो, मिलनेवाले कितने ही क्यों न बैठे हों: पर उनका माताके पास बैठनेका नियत समय प्रायः निर्बाध रहता था । माताजी भी धर्मरुचि और खास कर योगरुचि थीं। उन्हें जैन शास्त्रके तत्त्वोंका परिचय ठीक था। और शास्त्र सुनना बडा पसंद था । मैं जब कभी माजीके पास बैठता तो शास्त्र और धर्म तत्त्वकी चर्चा चलती। कभी आनन्दघन, कभी चिदानन्द और कभी यशोविजयजीकी कृतिओंका वाचन-श्रवण चलता। बहुधा यही देखा कि उस मातृमण्डलकी चर्चा वार्ताके समय सिंधीजी आवश्यक काम छोडकर भी बैठते थे। सिंधीजीने एक बार कहा कि 'मैं अपना जन्म - दिन आने पर उसकी खुशी माताजीकी आरती उतार कर मनाता हूँ।' माताजीकी परितृप्तिके लिये वे शान्तिविजयजी महाराजके पास महिनों तक आबू आदि भिन्न भिन्न स्थानोंमें कारोबार छोड़कर रहते थे और हजारोंका खर्च करते थे। यों तो वे अपने माता - पिताके साथ जैन -तीयोंकी अनेक बार यात्रा कर चुके थे पर १९३१ ई०में वे माताजीको लेकर उत्तर और दक्षिण हिन्दुस्थानके सभी प्रसिद्ध जैन - जैनेतर तीर्थों में हो आये । १९२९ ई०में पिताजीके स्वर्गवासके बाद उनकी स्मृति कायम रखनेकी भावनासे उन्हींको अभिमत विद्या, साहित्य और धर्मकी अभिवृद्धि और उत्तेजन देनेका सिंघीजीका विचार स्थिर हुआ । क्या काम करना, कहाँ करना, कैसे करना, किस दृष्टि से और किसकी निगरानीमें संचालित करना इत्यादि मुख्य प्रश्नोंपर ऊहापोह होनेके बाद, सिंधीजीने तय किया कि मेरी कल्पना और सम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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