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वर्ष]
श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [८१ स्वास्थ्यका पूरा हाल मालुम हुआ। उसे सुन कर मन पर बहुत कुछ चिन्ताजनक प्रभाव पडा । श्यामको ६ बजे उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया । उठ कर प्रणामादि किया । उस दिन उनका स्वास्थ्य अन्यदिनोंकी अपेक्षा कुछ अच्छा उनको मालुम देता था सो प्रसन्नतापूर्वक बातें चीतें करने लगे। - मेरे दाहिने खबेमें ३-४ महिनोंसे कुछ दर्द हो रहा था वह उनको मालुम था, इसलिये सबसे पहले उन्होंने उसीके विषयमें पूछा और जब उनको मालुम हुआ कि वह दर्द भभी तक मिटा नहीं है, तब वे कुछ उत्तेजित स्वरसे कहने लगे कि-'आपका शरीर तो आगे ही ऐसा है और फिर इन शर्दीके दिनोंमें कभी कानपुर, कभी बनारस और कभी कलकत्ता आदिके इस तरहके कष्टदायक प्रवास कर उसे आप क्यों और अधिक खराब कर रहे हैं, और क्यों अपने आयुष्यको अधिक क्षीण बना रहे हैं ? - इस प्रकारका बहुतसा स्नेहप्रपूर्ण उपालंभ उन्होंने मुझको दिया। - इसके उत्तरमें मैंने फिर वे सब बातें उनको विस्तारसे सुनाई जिनकेलिये मुझे कानपुर, बनारस आदि स्थानोंमें जाना-करना आवश्यक हुआ था। फिर 'भारतीय इतिहास' के आलेखनकी योजनाका परिचय उनको दिया और अभी तक जितना काम हो गया है उसका दिग्दर्शन कराया। प्राचीन इतिहासके विषयमें उनकी बहुत ही अधिक रुचि रहती थी इसलिये ये सब बातें सुन कर वे बहुत प्रसन्न हुए । मैंने जब उनसे कहा कि 'डॉ. रमेशचन्द्र मजुमदारको हम लोगोंने इस कार्यके प्रधान संपादक बनाना चाहा है और कल सुबह उनसे मिल कर, अपने साथ ही उनको बंबई ले जानेका विचार है'; तो वे बोले कि 'डा. मजुमदार इस कामके पूर्ण योग्य हैं। हमारा उनसे अच्छा परिचय है; बहुत अच्छे व्यक्ति हैं'-इत्यादि । फिर वे बोले 'भारतवर्षका एक ऐसा विस्तृत और प्रमाणभूत इतिहास लिखे जानेके लिये तो हमारे मनमें भी बहुत बार विचार आता रहा है और हमको इसमें बहुत ही रस रहा है। श्रीमुंशीजीने जो इस कामको इस तरह अब उठाया है वह बहुत ही उत्तम है और इसमें भाप लोगोंको जरूर सफलता मिलनी चाहिये। हमारा शरीर अच्छा हो गया तो हम भी इसमें यथायोग्य मदत देनेको उत्सुक होंगे-इत्यादि ।
फिर थोड़ी देर बाद बोले- 'आपने कई दफह एक अच्छा विस्तृत जैन इतिहासके लिखे जानेकी बात की है; सो इस कार्यके साथ उसकी भी कोई योजना हो जाय तो वह भी साथमें तैयार हो सकता है। क्यों कि भारतवर्षके सभी प्रसिद्ध प्रसिद्ध विद्वानोंका सहकार आपको इस कार्यमें मिलनेवाला है ही। उन्हीं से जैन संस्कृतिके ज्ञाताओं द्वारा जैन इतिहासकी सामग्री भी सहज ही में तैयार कराई जा सकती है।' मैंने कहा 'आप जरा अच्छे बन जाय और जैसा कि आपने बम्बईमें मुझसे कहा था-साल भरमें कुछ महिने वहां आकर रहना पसन्द करेंगे; तब फिर इसके बारेमें अपने कोई योजना सोचे विचारेंगे।' इस तरहकी विविध बातें, उसी पुरानी पद्धतिके मुताबिक, हमारे बीच में उस रातको होती रही।
बनारसमें पण्डितजीकी परिस्थिति आदिके बारेमें भी उन्होंने पूछ-ताछ की और जब मैंने यह कहा कि 'अब पण्डितजी बनारस सदाके लिये छोड़ रहे हैं और यहांसे मैं
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