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________________ वर्ष] श्री बहादुर सिंहजी सिंघीके पुण्य स्मरण [७९ वारंवार मिलना आदि हुए करता था। परिणाममें सिंधीजीने अपनी यह स्पष्ट इच्छा प्रदर्शित की कि यदि पण्डितजी कलकत्ते में रहना और कम-से-कम तीन वर्ष तक चेयरके संचालनका भार अपने ऊपर लेना स्वीकार करें, तो मैं उसका आर्थिक भार, जो प्रायः वार्षिक ६००० रूपये तकका सोचा गया है, उठानेके लिये खुशी हूं।' परन्तु पण्डितजीकी शारीरिक स्थिति, अब उस भारको उठानेके लिये ठीक अनुरूप न होनेसे, इन्होंने अपनी असमर्थता प्रकट की और वह विचार वहीं खत्म हुआ। पण्डितजी भी फिर वहांसे बनारस जानेके लिये उद्युक्त हुए। मैं ता. २८ सप्टेंबरको कलकत्तासे रवाना हो कर ता. ३० को बंबई पहुंचा। मुंशीजीसे वह सब वृत्तान्त कह सुनाया और नाहर लाईब्रेरीके प्राप्त करनेकी प्रतीक्षा करने लगा। सिंघीजीने इस प्रकार लाईब्रेरीके लिये अपनी उदारताका जो भाव मुझसे प्रकट किया था वह मैंने अपने मनमें पूर्ण गुप्त रखा था। मैंने पण्डितजी या मुंशीजी तकको उसका जिक्र न किया था। मैंने सोचा था जिस दिन यह कार्य सोलह आना सिद्ध हो जायगा, उसी दिन इसकी प्रसिद्धि करनेमें बहुत स्वारस्य रहेगा। परंतु विधिका संकेत इसमें कुछ और ही प्रकारका था। उस संकल्पित उदारताका यश प्रत्यक्ष सिंघीजीको न मिल कर, उनके स्वर्गवासके पश्चात् , उनके सत्पुत्र श्रीमान् बाबू राजेन्द्रसिंहको मिलना निर्मित हुआ था। सिंघीजीके स्वास्थ्यका बिगडना मेरे कलकत्तेसे आने बाद, थोडे ही दिन पीछे, सिंघीजीका स्वास्थ्य खराब रहने 'लगा, और वह धीरे धीरे विकृत रूप धारण करने लगा। उनको किडनीकी बीमारी थी जो इस समय उग्र अवस्थामें पहुंच गई। कलकत्तेके सभी बडे बडे डॉक्टरोंसे उपचार कराया जाता था परन्तु रोग काबूमें नहीं आता था। दिन प्रतिदिन स्थिति चिन्ताजनक होती जाती थी। बीच-बीचमें कभी ५-७ दिन कुछ ठीक मालुम देता और उसके बाद उससे भी अधिक खराब हालत हो जाती। इससे सभी कुटुंबी जन खिन्नमनस्क होने लगे। बाबूजीकी ऐसी अस्वस्थ प्रकृतिके चिन्ताजनक समाचार मुझे श्रीमान् राजेन्द्रसिंहजीने एक पत्र लिख कर सूचित किये । उन्होंने लिखा कि ... "आपके कलकत्तेसे गये बाद, पूज्य श्रीबाबूजी साहबकी तबियत ठीक नहीं रहती है। सांसका फुलना, पेटमें वायु होना, पेशाब कमती होना, रातमें नींद नहीं आना इत्यादि शिकायतोंसे तकलीफ पा रहे हैं । ता. ८ नबम्बरसे १३ नवम्बर तक हीचकी बराबर बनी रही जिससे शरीर बहुत थक गया है। शरीर भी बहुत ज्यादह दुर्बल हो गया है। दवाई बराबर चालू है। जो बीमारी ज्यादह हो गई थी वह कम गई है, लेकिन असल बीमारी अभीतक एक ही माफिक है । पूज्य श्रीबाबूजी साब १२ सप्टेंबरसे कलकत्तेमें ही हैं। आजकल लखनऊके हकीमकी दवाई चल रही है । पूज्यश्री दादीमां भी इसीलिये १४ नवबंरसे कलकत्तेमें ही है।" उनकी तबियतके ऐसे उद्वेगकारक समाचार जानकर, मेरी इच्छा तुरन्त कलकत्ता जानेकी हुई । परन्तु डीसेंबरके दूसरे सप्ताहमें, कानपुरमें श्रीमुंशीजीकी अध्यक्षता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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