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कर्मचन्द्रवच्छावत सुयश
अरे बोहित्थरावंशइ उदयो रे भाण, कर्मचन्द्र मंत्री अवसरजाण । अरे जेहना रे पुत्ररतन वे जाणूं, भागचंद लखमीचंद वखां ॥ अरे उत्तम कहिय ए परिवार, जित नित करणी करइ रे उदार । अरे मतपर जां लगि भ्रू रवि चंद, सपरिवार करउ मंत्र' आणंद || अरे हिव जुगवर श्रीजिनचन्द्र सूरीश, आचारिज जिनसिंह मुनीश । अरे श्री अकबर साहिब मन रीजइ, दिन दिन ओच्छव चढता कीजइ ॥
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१ इससे ज्ञात होता है कि इस रासकी रचना कर्मचन्द्रजीकी विद्यमानता में ही हुई थी । अतः यह भी प्रमाणिक साधनों में है !
मंत्री श्वर कर्मचन्द्र व च्छा व त सुयश ।
हा राखि हो मेदिनी मरती, ब्रहसघण वड वीर । ऊदाहरा आधार अन्न दे, भुजे ताहरै भार ॥ भरतार मेल्हे जाइ भामिणी, पेट कजि परदेश | ऊबारिया कर्मचन्द ओले, डूलता दस देश ॥ निजपुरे नगरे बडे गामे, दियै न कोई दान । तदि कोठार कर्मचन्द करि, भुगता धींग सुपै धान ॥ जग छेल मुहतै काज, जोई सुध न देनै सांक । करमचंदतौ परसाद, कितरा सलत रहिया रांक ॥। दातार घणा दस देश दुधीया, घणुं समपइ सुद्रव्य घणा । गुण्डीर मनि करता गयवर, तूं आप संग्रामतणा ॥ जगि दातार केता जिणशासन, अवसर देखिवि द्रवै आथि । कवि मोटा तुं जेम करमचंद, हाथी फिणहि न दीना हाथि।। जिन सदीह वह तल जोडे करि दाखवि सनूरा कंध । तूं करमचंद त्यागूआं तूठौ, गज इसडा आप जगबंध || सामि सनाह नगाहर सूरज, चलै न कदही ग्रहियौ चाल । समधरनै करमचंद समापै, सारसीयां करता खंडाल || ऊदा नागदेव बच्छराज, इणि कुल घडन सत्रहर घाट । मेदिनी तिलक तूं करमचंद, मुंहता प्रगटियौ तिणि पाट | बंध बाधा गड गाजै, ब्रहस घणा छुटवालि । चक्रवर्त्ति सांगातणि, चाउरि चंद बइठौ चालि ॥ हुज दार हाल हुकम हाले गणित नावे गाम । मानियो राउ कल्याण, मुंहता मेर जिवडी माम ॥ चाढियों चांपा जुव रचावौ, वंश सघले वांन । जग फोडि समधर सुकवि, जयै राज कर राजान ॥
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