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कविवर सूरजचंद्र रचित
मंत्री कर्म चंद्रकृत जिन सिंह सूरि पदोत्सव वर्णन
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[ कविवर सूरजचैन्द्रकृत “जिनसिंह सूरिरास " (सं० १६६८ लि०) हाल ही में उपलब्ध हुआ है उसमें मंत्रीश्वर कर्मचन्द्रजीकारित जिनसिंह पदोत्सवका वर्णन इस प्रकार मिलता है - ]
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अरे उत्सव करइ मंत्रिराज तिवारई, संग्राम सुता कर्मचन्द्रसवारई । अरे करणी रे मोटी जिण घणी कीधी, दान पंइतीसइ देई कीरति लाधी ॥ अरे ! आबूकी प्रतिमा जेणइ छोडावी, देश घणइ लाहणी मोकलावी । अरे कुलि हुवा मोटा रे पुरिखा, नागदे नगराज वच्छा सरिखा ॥
अरे पूरवई कर्मसीय जाणूं ऋण, लाख फदीया खरच वखाण । अरे श्रीजिनंसरि थपाव्या, जेहना रे गुण त्रिहुं भुवने गाव्या ॥ अरे पूरव विरुद अजुवालिवा काजई, गुरुभणी भर्गा करइ मंत्रिराजइ । अरे रातीजोगा महोत्सव कीजइ, मुहमाग्या तिहां दान ज दीजइ ॥ अरे श्रीपतिसाहतणा तिहां वाजा, बाजइ अहनिशि सबल दिवाजा । अरे उपर मण्डप तम्बू ताड्या, कुमति जनना रे मान तिहां पाड्या ॥ अरे खान वजीर उंबरा रे आवर, साहियादा तिम सुगुरु वधावइ । अरे जय जय शब्द बंदीजन बोलइ, मारि शब्दको न कहइ बोलइ || अरे ढोल दमामा सरनारि नफेरी, पंचसवद मादल भुंगल भेरी । अरे गीत कवित्त गंधर्व गुण गायई, भाट भोजिग कहइ छंद सवाई ॥ अरे पुन्यवंत श्रावक इतिहां दान, वस्त्र गंठोडा फोफल पान । अरे सोनहरी कबाइज दीजई, लखमी लाधी लाहु लीजई ॥ अरे ततखिण मंत्री कर्मचन्द्र आवइ, गाम नवे नव गजस्यु छापई । अरे पांचसय हयवर मुंहतइ दीधा, कोडि सवा देइ सुशब्द कीधा ॥ अरे टiniसर राजपाल श्रीमाल, घोडा अढाइ सई द्यइ सुकमाल । अरे जिनचंद्रसूरि गुरू जुगवर हुआ, मंगल गावइ साहवधूआ || अरे संवत सोल गुणचाला वरसई, फागुण सुदि दुतिया मन हरसई । अरे श्रीजिनसिंह (सूरि) गुरू थाप्या, जुगवर जिनचंद सूरिमंत्र आप्या ॥ (१) देखें युगप्रधान जिनचंद्रसूरि पृ. २०४ (२) उक्त प्रन्थ पृ. १७४ ।
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