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श्री करमचंद मंत्रि-वं श प्रबन्ध ।
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एह प्रतिज्ञा मइ करी, युग-प्रधान गुरु साखइ रे । मानवंत जण आपणी, कीरति इण परि राखइ रे ॥ श्रीजिन० ॥ २६७ -संघ सहू मिलि मंत्रिनइ, मंदिर हरषि पहूतउ रे । यशनउ तिलक करण भणी, जिनि जगि वदीतउ रे ॥ श्रीजिन० ॥ २६८ श्रीसंघ महत घणउ दीयउ, मंत्री उचिति न चूकइ रे । नववति वाजा वाजीया, याचक जन सवि दूकइ रे ॥ श्रीजिन० ॥ २६९ सोनहरी गज हय भला, देइनइ संतोषइ रे । वस्त्र पात्र अन्नादिकर, साधुजनांना पोषइ रे || श्रीजिन० || अफजल आगलि करी, श्रीसाहिजीनइ भेटइ रे । मोटा माणस आपणी, कुलवट कदे न मेटइ रे || श्रीजिन० ।। २७१ दस सहस्र रूपक धरइ, दश गज द्वादश वाजी रे । विविध वस्त्र ते देखिनइ, हरख्यउ जलालदी गाजी रे ।। श्रीजिन० ।। २७२ मुझे आगलि किन कारणइ, एह भेटि तइ आंणी रे । तब मंत्रीसर मुखथकी, बोलइ अमृत वाणी रे ॥ श्रीजिन० ॥ २७३ युग-प्रधानपद उछव, श्रीजीनइ भेटि देवा रे । आणी छइ तिणि लीजियइ, रूपीयउ इक लेवा रे || श्रीजिन० ॥ २७४ हाथ धर्य थाल उपर, श्रीजी सब बहुरावइ रे । हम सब तुमकुं बक्सीयउ, शेखू महलइ आइ रे || श्रीजिन० | २७५ भेटि दइ संतोषीय, श्रीसुरताण सिलेमो रे । काम सिराडइ चाडीयउ, अधिकउ धरि मन प्रेमो रे । श्रीजिन० || २७६ बहिस्थ-संततिनइ दीयइ, जुग-प्रधान गणधारो रे । पक्ष चउमासि पजूसणइ, श्रीजयतिहुयण सारो रे || श्रीजिन० ॥ २७७ तिम चउमासइ पाखीयइ, संवच्छरीयइ थूइ रे । पडिकमणइ संध्या तण, श्रीमालानइ हूइ रे ॥ श्रीजिन० ॥ २७८ इम श्रीजिनशासनि उदउ, करतउ श्रीमंत्रिराजा रे । दस दिसि जेहना जगि घुर्या, सार रवइ जस वाजा रे ॥ श्रीजिन०|| २७९जग मंत्री हूआ हूस्यइ, एहनइ कोइ न तोलइ रे । अकबर साहि जलालदी, श्रीमुखि जसु गुण बोलइ रे ॥ श्रीजिन० ॥ २८० कलियुग ते सोहागीय, जिनिमइ मंत्रीजी जागइ रे 1
कृतयुग ते लेख किस, जिहां एहवा नवि आगइ रे || श्रीजिन० ॥
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सामि धरमि मुहतउ भलउ, जाणइ बाल गोपाला रे । अमृत सम जेहनउ काउ, मानइ सवि भूपाला रे || श्रीजिन० ॥ २८२ सपरिवार ए चिर जयउ, मंत्रीसर भली भांतर रे । वखतदार मति आगलउ, जायउ जस नीरांतइ रे ॥ श्रीजिन० ॥ २८३ जिम पूनिमनउ चंदलउ, धरणि धवल रुचि भावइ रे । तिम श्रीक्रमचंद्र मंत्रची, निज कुलि सोह चडावइ रे ॥ श्रीजिन० ॥ २८४ के ताइक गुण संभल्या, ताइक गुण दीठा रे । ते गुण गूथ्या गुण भंणी, सुणता लागइ मीठा रे ॥ श्रीजिन० ॥ प्रबंध कहां जिका, सावद्य-भाषा भाषी रे । मिच्छा दुक्कड तेहनउ, मुझनइ अरहंत साखो रे ॥ श्रीजिन० ॥ नरदुषण पूरीया, खल लइ दूषण जोइ रे । के लिवनइ करहउ गयउ, कंटालइ रह होइ रे ॥ श्रीजिन० ॥
गुण कला, दूषण लेस न लीजइ रे । राजहंसि जिम जल त्यजी, सूधउ दूध जि पीजइ रे । श्रीजिन० ॥ छंडी नइ खल रीतिनइ, सज्जन रीति बगाइ रे । गुण के ताइक मंत्रिना, कहीयइ अछइ घगाइ रे ॥ श्रीजिन० ॥ योगी भोगी जे अछ, यती व्रती मतिमंतो रे । ते सगला जस एहना, बोलइ जिणि गुणवंतो रे ॥ श्रीजिन० ॥ अरहंत देव सुगुरू तणी, सेवा करइ अपारो रे । संघ भगति दिन प्रति करइ, दानइ करी उदारो रे ॥ श्रीजिन० ॥ सोलह पंचावन, गुरू अनुराधा योगइ रे । माहवइ दसमी दिनइ, मंत्री वचन प्रयोगइ रे ॥ श्रीजिन० ॥ राज करमचंद्र मंत्रिन, सधरनगर तो सामइ रे । संभवनाथ पसाउलइ, जिहां सवि वंछित पामइ रे ॥ श्रीजिन० ॥ जिहां जिनकुशल गुरूतणउ, करमट मंत्रि करायउ रे । धूभ सकल संपति करइ, दिन प्रति तेजि सवायउ ॥ श्रीजिन ० ॥ पाठक श्रीजय सोमजी, सुगुरू जिहां चउमासह रे । श्रीसंघनइ आग्रहथकी, निवस्या चित्त उलासह रे ॥ श्रीजिन० ॥ २९५ तसु आदेस लही करी, देखी वंसप्रबंधो रे । वाचक गुणविनयइ कीयउ, एह सरस संबंधी रे ॥ श्रीजिन० ॥ २९६ चिर नंदउ परबंध ए, जां लगि मेरुगिरिंदो रे । श्रीजिनकुशल पसाउलइ, जा लगि चंद दिनिंदो रे ॥ श्रीजिन० ॥ २९७ गाव परबंध जे, जिनशासन जयकारो रे । ते पामइ सुखसंपदा, सोहगसिरि सिणगारो रे ॥ श्रीजिन० ॥ ॥ इति श्रीमंत्रिराज श्रीकर्मचंद्रवंशावलीप्रबंधः संपूर्णः ॥
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