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________________ ठक्कुरफेरूविरचिता [पाठान्तर-उप्पतीओ अग्गी ससिकंतिओ झरेइ अमियजलं । ___ रविकंत-चंदकंते दुन्नि वि फलिहाओ जायंति ॥ ५५] पुंसरायं जहा बहुपीय कणयवन्नो समणिद्धो पुंसराओ हिमवंते । जायइ जो धरइ सया तस्स गुरू हवइ सुपसन्नो ॥ ९७ ॥ [पाठान्तर-बहुपीय रुहिरवण्णो ससिणेहो होइ पुंसराओ य । भीसमु विण चंदसमो दुन्नि वि जायंति हिमवंते ॥५६] ककेयणं जहा पवणुप्पट्ठाण देसे जायइ ककेयणं सुखाणीओ। तंबय सुपक्क महुवय नीलाभं सदिढ सुसणिद्धं ॥९८ ॥ छ । [पाठान्तर-पवणुत्थठाणदेसे जायइ कक्केयगं सुखाणिओ । तंबय सुपक्कमहुय चय नीलाभं सुदिढ सुसणेहं ॥ ५२] भीसमं जहा भीसमु दिणचंदसमो पंडुरओ हेमवंतसंभूओ । जो धरइ तस्स न हवइ पाएणं अग्गि- विजुभयं ॥ ९९ ॥ ॥ इति रयणसप्तकं ॥ सिरिनायकुल परेवग देसे तह नव्या नईमज्झे । गोमेय इंदगोवं सुसणिद्धं पंडुरं पीयं ॥ १० ॥ [पाठान्तर-सिरिनायकुलपरेवमदेसे तह जम्मलनईमज्झे । गोमेय इंदगोवं सुसणेहं पंडुरं पीयं ॥ ५३] गुणसहिया मलरहिया मंगलजणया य लच्छिआवासा । विग्घहरा देवपिया रयणा सव्वे वि सपहाया ॥१०१॥ मुत्तिय वज पवालय तिन्नि वि रयणाणि भिन्नजाईणि । वन्नवि जाइविसेसो सेसा पुण भिन्नजाईओ॥ १०२॥ इय सत्थुत्तर(सत्तुत्तम) रयणा भणिय भणामित्थ पारसीरयणा । वन्नागर संजुत्ता लाल अकीया य पेरुज्जा ॥ १०३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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