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रत्नपरीक्षा अह विहुम ल्हसणिययं वइडुजो फलिह पुंसराओ य।
ककेयग भीसम्मो भणियं इय सत्त रयणाणं ॥ ८९॥ विदुमं जहा
कावेर विंझपव्वइ चीण महाचीण उवहि नयपाळे ।
वल्लीरूवं जायइ पवालयं कंदनालमयं ॥ ९॥ [पाठान्तर-वल्लीरूवं कच्छ(त्थ)वि पवालय होइ उयहिमज्झम्मि ।
बहुरत्त कढिण कोमल जह नालं सव्वसुसणेहं ॥ ५०] बहुरंगं सुसणिद्धं सुपसन्नं तह य कोमलं विमलं ।
घणवन्न वन्नरत्तं भूमिय पयं विदुमं परमं ॥ ९१ ॥ छ । ल्हसणियओ जहा
नीलुजल पीयारुण छाया कंतीइ फिरइ जस्संगे। तं ल्हसणियं पहाणं सिंघलदीवाउ संभूयं ॥ ९२ ॥ इक्कोवि य ल्हसणियओ अदोस अइ चुक्खओ विरालक्खो।
नवगहरयण समगुणो भणंति तं सपुलियं केवि ॥ ९३ ॥ वइडुजं जहा
कुवियंगय देसोवहि वइडूरनगेसु हवइ वइडुजं ।
वंसदलाभं नीलं वीरिय-संताण- पोसयरं ॥ ९४ ॥ [पाठान्तर-रयणायरस्स मज्झे कुवियंगय नाम जणवओ तत्थ ।
वइड्रनगे जायइ वइडुजं वंसपत्ताभं ॥५१] फलिहं जहा
नयवाल कासमीरे चीणे कावेरि जउणनइतीरे ।
विंझगिरि हुंति फलिहं अइनिम्मलदप्पणु व्व सियं ॥ ९५ ॥ [पाठान्तर-नयवाले कसमीरे चीणे कावेरि जउणनइकूले।
विंझनगे उप्पजइ फलिहं अइनिम्मलं सेयं ॥ ५४] रविकंताओ अग्गी ससिकंताओ झरेइ अमिय जलं । रविकंत -चंदकंते दुन्नि वि फलिहाउ जायंति ॥ ९६ ॥
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