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ठकुरफेरूविरचिताअथ पद्मरागमणिर्यथा
रामा गंगनई तड़ि सिंघलि कलसउरि तुंवरे देसे । माणिक्काणुप्पत्ती विहु विहु पुण दोस गुण वन्ना ॥ ५५ ॥ पढमित्थ पउमरायं सोगंधिय नीलगंध कुरुविंदं । जामुणिय पंच जाई चुन्निय माणिक्क नामेहिं ॥ ५६ ॥ सूरु व्व किरणपसरा सुसणिद्धं कोमलं च अग्गिनिहा । जं कणयसमं कढिया अक्खीणा पउमरायं सा ॥ ५७ ॥ किंसुय कुसुम कसुंभय कोइल - सारिस - चकोर - अक्खिसमं । दाडिमबीजनिहं जं तमित्थ सोगंधिया नेया ॥ ५८ ॥ कमलालत्तय - विदुम - हिंगुलुयसमो य किंचि नीलाभो । खज्जोयकंतिसरिसो इय वन्ने नीलगंधो य ॥ ५९॥ पढम तह साव गंधयसमप्पहं रंगबहुल कुरविंदा । पुण सत्तासं लहुयं सजलं च इय सहाव गुणं ॥६॥ जामुणिया विन्नेया जंबू कणवीररत्तपुप्फसमा । मुल्लस्संतरमेयं वीसं पनरस दस छ तिग विसुवा ॥ ६१ ॥ सुच्छायं सुसणिद्धं किरणाभं कोमलं च रंगिलं । सुरुयं समं महंतं माणिकं हवइ अट्ठगुणं ॥ ६२ ॥ गयछायं जड धूमं भिन्नं ल्हसणं सकक्करं कढिणं । विपयं रुक्खं च तहा अड दोसा भणिय माणिकं ॥ ६३ ॥ गुणपुवुन्न जहुत्तं माणिकं दोसवज्जियं अमलं । जो धरइ तस्स रजं पुत्तं अत्थं हवइ नूणं ॥६४ ॥ गुणसहिय पउमरायं धरिए नरनाह आवया टलइ । सहोसेण उवज्जइ न संसयं इत्थ जाणेह ॥६५॥ अगुण विवन्नच्छायं ल्हसण जुयं थडयं च खग्गं च । इय माणिक्कं धरियं सुदेसभटुं नरं कुणइ ॥६६॥
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