SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नपरीक्षा परं विशेषोऽयम् - कोसल कलिंग पढमे दुइए हेमंत तह य मायंगे। पंडुर सुरट्ठ तईए वेणुज सोपारय कलिंमि ॥ २२ ॥ छ कोण अट्ठ फलहा वारस धारा य हुंति वज्जा य । अट्ठ गुणा नव दोसा चउ छाया चउर वन्न कमा ॥ २३ ॥ समफलह उच्चकोणा सुतिक्खधारा य वारितर अमला । उज्जल अड़ोस लहु तुल इय वजे हाँति अट्ठ गुणा ॥ २४ ॥ कागपग बिंदु रेहा समला फुट्टा य एगसिंगा य । वट्टा य जवाकारा हीणाहियकोण नव दोसा ॥ २५ ॥ सिय विप्प अरुण खत्तिय पीय वइस्सा य कसिण सुद्दा य। इय चउ वन्न दुजाई चुक्खा तह मालवी नेया ॥ २६ ॥ निदोस सगुण उत्तिम चत्तारि वि वन्न हुंति जस्स गिहे। तस्स न हवंति विग्धं अकालमरणं न सत्तुभयं ॥ २७ ॥ चत्तारि वि वन्न तहा पीयारुण नरवराण रिद्धिकरा । सेसा नियनिय वन्ने सुहंकरा वज नायव्वा ॥ २८ ॥ लच्छीए आयड्डी थंभइ अरिणो परि(र)कम समरे । तेणं अरुणं पीयं नरेसरो धरइ वरवजं ॥ २९॥ जह दप्पणेण वयणं दीसइ तह उत्तमेण वजेण । नर तिरिय रुक्ख मंदिर तहिंदधणुहाई दीसंति ॥ ३० ॥ अइचुक्ख तिक्खधारा पुत्तत्थीइत्थियाण हाणिकरा । चप्पड़ि मलिण तिकोणा रमणीणं वज्ज सुहजणया ॥ ३१ ॥ भणियं चअहमेव पढमरयणं सुपुत्तरयणाण खाणि मुह कुच्छी । कोण वराओ वज्जो इय दोसं दाउ धर इत्थी ॥ ३२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy