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________________ ठकुर-फेरू-विरचित रावणगंगा में चार रंग के मानक मिलते थे पर मानसोल्लास (४७५-४७६ ) के अनुसार सिंहल का पभराग लाल, कालपुर का कुरुविंद पीला, आंध्र का सौगंधिक अशोक के पल्लव के रंग का, तथा तुंबर का नीलगंधि नीले रंग का होता था। पर खानों " के अनुसार मानिक का रंगों के अनुसार वर्गीकरण कोरी कल्पना जान पड़ती है। अगस्तीय रत्नपरीक्षा (४७, ५२ ) के अनुसार तो मानिक के वर्ण भी निश्चित कर दिए गए हैं। उस ग्रंथ में पद्मराग ब्राह्मण, कुरुविंद क्षत्रिय, श्यामगंधि वैश्य और मांसखंड शूद्र माना गया है । ब्राह्मण वर्ण का मानिक सफेद और लाल मिश्रित, क्षत्रिय गहरा लाल, वैश्य पीला मिश्रित लाल और शूद्र पीला मिश्रित लाल रंग का होता था। यहां यह बाब जानने लायक है कि यह विश्वास केवल शास्त्रीय ही नहीं था इसका प्रसार लोगों में भी था । इब्नबतूता के अनुसार सिंहल के मानिक को ब्राह्मण कहते भी थे। . ठक्कुर फेरू के अनुसार (५७-६१) पमराग, सूर्य तपे सोने और अग्निवर्ण का; सौगंधिक पलास के फल, कोयल, सारस और चकोर की आंख के रंग जैसा तथा अनारदाने के रंग का; नीलगंध कमल, आलता, मूंगा और ईगुर के रंग का; कुरविंद पनराग और सौगंधिक के रंग का और जमुनिया जामुन और कनेर के फूल के रंग का होता था। मानसोल्लास (४८५) के अनुसार स्निग्ध छाया, गुरुत्व, निर्मलता और अतिरक्तता मानिक के गुण माने गए हैं । अगस्तीय रत्नपरीक्षा के अनुसार (५३, ६०) बढ़िया, मानिक गहरे लाल रंग का, लोहे से न कटनेवाला, चिकना, मांसपिंड की आभा देने वाला, बुद्धिदायक तथा पापनाशक होता था। मानिक के आठ दोष यथा - द्विच्छाय, द्विपद, भिन्न, कर्कर, लशुनपद (दूध से पुतेकी तरह ) कोमल, जड़ (रंगहीन ) और धूम्र (धुमैला ) मानिक के दोष हैं ( मानसोल्लास, ४७९-४८३)। ठकुर फेरू के अनुसार (६२) मानिक के ये आठ गुण हैं यथा - सच्छाय, सुनिग्ध, किरणाम, कोमल, रंगीलापन, गुरुता, समता और महत्ता । इसके दोष हैं (६३) गतछाय, जड़ धूम्रता, भिन्न लशुन कर्कर और कठिन, विपद तथा रूक्ष । ठकुर फेरू के अनुसार मानिक की तौल और दाम के बारे में हम ऊपर कह आए है। वराहमिहिर के अनुसार एक पल (४ कार्ष) के मानिक का दाम २६०००, ३ कार्ष का २००००, २ कार्ष का १२०००, १ कार्ष (१६ माषक) का ६०००, ८ माषक का ३०००, ४ माषक का १००० और २ माषक का ५०० है । बुद्धभट्ट (१४४) के अनुसार समान तौल के हीरे और मानिक का एक ही मूल्य होता है; पर हीरे की तौल तंडुलों में और मानिक की तौल माषकों में होती है । अगस्तिमत के अनुसार मानिक का दाम बढना तीन बातों पर अवलंबित था । यथा-मानिक की किस्म, घनत्व ( यवों में ) तथा कांति (सर्षपों में ) मानिक की साधारण कांति का मापदंड २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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