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रत्नपरीक्षा का परिचय
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है। चूर्ण को टीकाकार ने केरल में मुचिरिके पास एक गांव माना है। यह गांव शायद तामिल साहित्य का मुचिरि और पेरिप्लस ( शाफ, वहि, पृ० २०५ ) का मुजिरिस था जिसकी पहचान क्रेंगनोर में मुयिरिकोट्ट से की जाती है । मुजिरिस ईसा की आरंभिक सदियों में एक बड़ा बंदर था और बहुत संभव है कि यहां मोती आने से किसी नदी के नाम के आधार पर मोती का चौर्णेय नाम पड़ गया हो । टीका के अनुसार कौलेय मोती का नाम सिंहल की किसी कूल नदी के नाम पर पड़ा, पर विचार करने से यह बात ठीक नहीं मालूम पड़ती । कूल से पेरिप्लस (५९ ) के कोल्चि तथा शिलप्पदिकारम् ( पृ० २०२ ) के कौरकै से बोध होता है जो मोतियों के लिए प्रसिद्ध था । पेरिप्लस के समय में वह पांड्य देश का एक प्रसिद्ध बंदरगाह था । पर ताम्रलिप्ती नदी द्वारा बंदर के भर जाने पर बंदरगाह वहां से पांच मील दूर हटकर कायल में पहुंच गया । माहेन्द्रक, कार्दमक, हादीय और स्रौतसीय का ठीक पता नहीं चलता । टीकाकार के अनुसार कार्दम ईरान और स्रोतसी बर्बर देश में नदियां और हृद बर्बर देश में दह था । इन संकेतों में जो भी तथ्य हो पर यहां टीकाकार का फारस की खाड़ी और बर्बर देश से मोती आने की ओर संकेत अवश्य है ।
हिमालय तो सब रत्नों का घर माना ही जाता था । वराह मिहिर ८१३२ के अनुसार सिंहल, परलोक, सुराष्ट्र, ताम्रपर्णी, पार्श्ववास, कौरवाट, पांड्यवाट और हिमालय में मोती होते थे ।
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सिंहल - मनार की खाडी मोती के लिए प्रसिद्ध है । यह खाडी ६५ से १५० मील चौडी हिन्द महासागर की एक बाहु है । मोती के सीप सिंहल के उत्तर पश्चिमीतट से सट कर तथा तूतीकोरिन के आसपास मिलते हैं । मोतियों के इस स्रोत का उल्लेख प्लिनी (९५४ -८), पेरिप्लस ( ३५, ३६,५६,५९), मार्कोपोलो (दि बुक आफ सेर मार्कोफोलो, भा०२, पृ०२६७, २६८) फ्रायर जार्डेनस ( मीराविलिया डिसक्रिप्टा, इक्लूयेत सोसाइटी, १८६३, पृ०६३ ) लिनशोटेन ( दि वोयज आफ लिनशोटेन, हक्लूयेत सोसाइटी, १८८४, भा०२ पृ०१३३ - १३५ ) इत्यादि करते हैं ।
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परलोक - इसी को शायद ठकुर फेरू ने रामावलोक कहा है । इस प्रदेश का ठीक ठीक पता नहीं चलता पर यह ध्यान देने योग्य बात है कि मध्यकाल में अरब भौगो लिक पेगू को ब्रह्मादेश कहते थे । बरमा के समुद्रतट से कुछ दूर मेर्गुई द्वीप समूह के समुद्र में अब भी मोती मिळते हैं। रामा से पेगू की पहचान की जा सकती है । यहां सलंग लोग मोती निकालते हैं । सुराष्ट्र कल के रनके दखिन में, नवानगर के समुद्र तट के आगे जोधाबंदर के पास, मंगरा से कुछ की खाड़ी में पिंडेरा तक, आजद, चोक, कलंबार और नीरा के द्वीपों के आसपास भी मोती मिलते हैं ( सी० एफ० कुंज और सी० ० एच० स्टिवेन्सन, दि बुक आफ पर्ले, पृ० १३२, लंडन १९०८ ) । -
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