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________________ रत्नपरीक्षा का परिचय २००० ६. जाता था। इन रत्नों की बड़ी से बड़ी तौल एक टांक और छोटी तौल एक गुंजा मान ली गई है । पर एक टांक में १० से १०० तक चढ़नेवाले मोती तथा एक गुंजा में १ से १२ थान तक चढ़नेवाले हीरे का मूल्य चांदी के टांक में होता था। उपर्युक्त रत्नों के तौल और मूल्य दो यंत्रों में समझाए गए हैंकीमती रत्न सम्बन्धी यंत्रगुंजा |१२ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १५ १८ २१ २४ हीरा ५ /१२/२०३०५० ७५/११०/१६०२४०/३२०/४००६००१४०० ०२८००/५१००/११२०० **/**/**/**/**/**/************************************ मोती |०॥ २४८ १५/२५ ४० ६० ८४ ११७/१६०३६० ७०० मानिक२ ५ ८ |१२|१८२६४० ६० ८५ १२०/१६०/२२०/४२० ८०० १४००२४०० पना onluk /१२ ३ ४ ५ ६.८ १.१३ १८२७ ४० उपर्युक्त यन्त्र की जांच से कई बातों का पता लगता है। सबसे पहली बात तो यह है कि अलाउद्दीन के काल में और युगों की तरह हीरे की कीमत सब रत्नों से अधिक थी । हीरा जैसे जैसे तौल में बढ़ता जाता था उसी अनुपात में उसकी कीमत बढ़ती जाती थी । बारह रत्ती तक तो उसका दाम क्रमशः बढता था पर उसके बाद हर तीन रत्ती के वजन पर उसका दाम दुगना हो जाता था । अगर चांदी और सोने का अनुपात १० : १ मान लिया जाय तो एक टांक के हीरे का मूल्य १,२०००० चांदी के टांक के बराबर होता था। इसके विपरीत एक टांक के मोती का मूल्य २००० और मानिक का २४०० सुवर्ण टंका था । पन्ने का दाम तो बहुत ही कम यानी एक टंक के पन्ने का दाम ६० सुवर्ण टंका था । छोटे मोती और हीरों के तौल और दाम का यंत्रमोती(टंक १),१०/१२/१५/२०,२५/३०/४०५०६०-७०/७०-१०० . रुप्यटंक ५०४०३०२०१५/१२/१०८ वज्रगुजा रुप्य टंक ३५/२६/२०/१६/१३/१०८ ७६ उपर्युक्त यंत्र से यह पता चलता है कि मोती और हीरे जितने अधिक एक टांक में चढ़ते थे उतना ही उनका दाम कम होता जाता था और इसीलिए उनका दाम सोने के टांकों में न लगाया जाकर चांदी के टांको में लगाया जाता था। रन शास्त्रों के अनुसार नकली हीरा लोह, पुखराज, गोमेद, स्फटिक, वैडूर्य और शीशे से बनता था। ठक्कुर फेरू ( ३७) ने भी इन्हीं वस्तुओं को नकली हीरा बनाने के काम में लाने का उल्लेख किया है। नकली हीरे की पहचान अम्ल तथा दूसरे पत्थरों के काटने की शक्ति से होती थी। ठक्कुर फेरू (४८) के अनुसार तकली हीरा वजन में भारी, जल्दी बिंधनेवाला, पतली धार वाला तथा सरलतापूर्वक घिस जानेवाला होता था। १ २ E Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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