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________________ ठकुर-फेरू-विरचित ठीक है कि शिमला के पास कुछ हीरे मिले थे पर हिमालय में हीरे की खान होने का पता नहीं चलता । मातंग से यहां किस प्रदेश से तात्पर्य है इसका भी ठीक पता नहीं चलता । श्री फिनो (पृ० २६) चालुक्यराज मंगलीश के एक लेख के आधार पर मातंगों का निवास स्थान गोलकुंडा का प्रदेश स्थिर करते हैं। हरिषेण (बृहत्कथाकोश ७५।१-३) के अनुसार मातंग पांड्य देश तथा उसके उत्तर में पर्वत की संधि पर रहते थे। शायद यहां सेलम जिले के चीवरै पर्वत श्रेणी से मतलब है, पर यहां हीरे का पता नहीं चला है । पौण्ड देश से मालदह, कोसी के पूर्व पुर्निया जिले का कुछ भाग तथा दीनाजपुर और राजशाही जिले के कुछ भाग का बोध होता है। तथा पौण्डवर्धन से बोगरा जिले के महास्थान से मतलब है । शायद कलिंग के हीरे से कडपा, बेलारी, कर्नूल, कृष्णा, गोदावरी इत्यादि के तथा संभलपुर के पास ब्राह्मणी, संक, तथा दक्षिणी कोयल नदियों से मिलने वाले हीरे से है । जहांगीर युग की खोखरा की हीरे की खान भी इस बात की पुष्टी करती है । जहांगीर ने स्वयं अपने राज्य के दसवें वर्ष के विवरण (तुजूक, अंग्रेजी अनुवाद, भा० १, ३१६) में इस बात का उल्लेख किया है कि बिहार के सूबेदार इब्राहीम खाने खोखरा को फतह करके वहां के हीरे की खान पर कब्जा कर लिया । हीरे वहां की एक नदी से निकलते थे । इसमें संदेह नहीं कि कोसल से यहां दक्षिण कोसल से मतलब है । जिसकी पहचान आधुनिक महाकोसल से है. । शायद वैरागर और वेणातट या वेणु के हीरे कौसल ही के अन्तर्गत आ जाते हैं । वेणा नदी जो आज कल की वेन गंगा है चांदा जिले से होकर बहती है और उसी पर स्थित बैरागढ़ में हीरे मिलते हैं। मानसोल्लास के वैरागर (सं० वज्राकर ) की पहचान इसी वैरागढ़ से ठीक उतर जाती है । शायद यही स्थान चीनी यात्रियोंका कोस्सल और टाल्मी का कौसल रहा हो। अगस्तीय रत्नपरीक्षा में आए मगध से भी शायद छोटा नागपुर की खानों का बोध होता है। रत्नशास्त्रों में हीरे के अनेक रंग बताए गए हैं । इनके अनुसार सुराष्ट्र का हीरा लाल, हिमालय का तमैला, मातंग का पीला, पुंडू का भूरा, कलिंगका सुनहरा, कोसल का सिरीस के फूल के रंगवाला वेणा, का चन्द्र की तरह सफेद, तथा सुपारा का सफेद होता था। ठक्कर फेरू (२२) ने हीरे का रंग तमैला, सफेद नीला, मटमैला, हरताल की तरह पीला, तथा सिरीस के फूल जैसा बतलाया है। ये रंग खान-परक थे । हीरे के वर्गों की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया गया है । सफेद हीरा ब्राह्मण, लाल क्षत्रिय, पीला वैश्य और काला शूद्र पहनने का अधिकारी था। पर राजा को चारों वर्ण के हीरे पहनने का अधिकार था । पर बाद के लेखकों ने सफेद, लाल, पीले और काले हीरे को ही क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जाति में बांट दिया है । ठक्कुर फेरू (२६) भी इसी मतके हैं । उनकी राय में सफेद चोखा हीरा मालवी अर्थात मालवे का कहलाता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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