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________________ रत्नपरीक्षा का परिचय प्रधान रत्नशास्त्र हीरेकी खानें आठ या दस मानते हैं । पर कौटिल्य (अनुवाद, पृ० ७८ ) में हीरे की खानों के कुछ दूसरे ही नाम हैं । यथा, सभाराष्ट्रक (विदर्भ या बरार में ) मध्यम राष्ट्रक (कोसल यानी दक्षिण कोसल में ) काश्मक (शायद अश्मक ) [ हैदराबाद की गोलकुंडा की खान ] इन्द्रवानक ( कलिंग, ओड़ीसा) की तो पहचान टीकाकारों ने की है। काश्मक की पहचान टीकाकर ने बनारसी हीरे से की है । जिससे बनारस का हीरे तराशों का अड्डा होने की ओर संकेत हो सकता है। श्रीकटनक हीरा वेदोत्कट पर्वत में मिलता था । श्रीकटनक का ठीक पता नहीं चलता पर शायद इससे, धनकटक ( धरणीकोट ) जो प्राचीन अमरावती का नाम था, बोध होता है । अगर यह पहचान ठीक है तो यहां कृष्णानदी की घाटी में मिलनेवाले हीरों की ओर संकेत हो सकता है । मणिमन्तक हीरा मणिमत् अथवा मणिमंत पर्वत के पास पाया जाता था । इस मणिमत् पर्वत की पहचान श्रीपार्जिटर ने ( मार्कण्डेय पुराण, पृ० ३७० ) में कश्मीर के दक्षिण की पहाड़ियों से की है। यहां अब हीरा मिलनेका पता नहीं चलता । रत्नशास्त्रों में दी गई हीरे की खानों का पता निम्नलिखित तालिका से चल जाएगा - बुद्धभट्ट वराहमिहिर अगस्तिमत मानसोल्लास अगस्तीय रत्न -संग्रह ठक्कुर फेरू | रत्नपरीक्षा सुराष्ट्र हिमालय मातंग पौडू बंग कोशल वैण्यातट वेणातट वेणु सूर्पार Jain Education International मातंग वैरागर सौपार 1001 600. मगध मातंग आरब For Private & Personal Use Only १५ हेमंत हिमवंतः यहां यह निश्चित कर लेना कठिन है कि उपर्युक्त यंत्र में कितने भौगोलिक नाम वास्तविकता लिए हुए हैं और कितने काल्पनिक हैं । पर इसमें संदेह नहीं की यंत्र में खानों और बाजारों के नाम मिल गए हैं। यह भी संभव है कि बहुत सी प्राचीन खानें समाप्त हो गई हों और उनकी खुदाई बहुत प्राचीन काल में बंद कर दी गई हो । सुराष्ट्र यानी आधुनिक सौराष्ट्र में हीरे की किसी खान का पता नहीं चलता पर यह संभव है कि यहां से रत्न बाहर भेजे जाते हों। यहां एक उल्लेखनीय बात यह है कि प्राचीन साहित्य में जैसे महानिद्देस और वसुदेवहिण्डी में सुराष्ट्र एक बंदर का नाम भी आया है जो शायद सोमनाथ पट्टन हो । यही बात सूर्पारक यानी बम्बई के पास सोपारा बंदरगाह के बारे में भी कही जा सकती है। आर्यशूर की जातकमाला में तो इस बंदर में रत्नों लाए जाने का उल्लेख भी है। हिमालय में हीरे का होना तो उस अनुश्रुति का द्योतक है जिसके अनुसार मेरू, हिमालय और समुद्र रत्नों के आकर माने गए हैं । यह बात पंडुरः (पौडूः) ar सौपारक www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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