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[चतुर्थोऽध्यायः।] अथ देसा(शा)धिकारमाहढिल्लिय रायट्ठाणे कजं भूय करण मज्झमि । जं देसलेहपयडी तं फेरू भणइ चंदसुओ॥१ जसु जसु वंटिवि दिजइ तसु तसु जीवलइ जं भवे दव्यो। सो गुणिवि लद्ध दम्मिहि सव्वाण य जीवलइ भायं ॥२ सेव रायह, [सेव रायह ] पंच जण गए य, तह सव्वह जीवलइ तीस सहस्स एगत्थ रासिण, तिय तेरस पंच दुइ सत्त सहस इय भिन्न रूविण, वय कारणि जा नवसहस ते सव्विवि पार्वति । निय निय जिवला कड्डतहं किं किं कसु आवंति ॥ ३ उपक्खइ जं दव्वं हुइ तं पंडिय! करिज सयगुणियं । चट्टीहरे वि भायं जं लब्भइ तं सई होइ ॥ ४ गामि नयरि देसे जइ नवि लखि पंचास सहसि चट्टी य । सत्तरि सहस उपक्खइ ता तस्स किसा सई होइ॥ ५ जिसा सई भेइज्जइ जित्तिय धण कड्ड तहि स वट्टिज्जा । जुयलं तंक फुसिवि तह पणभागे होति विसुवा य ॥ ६ सहसेति अंतिमंका फुसवि कमे लिहसु दु चउरट्ठ गुणा । ते विसुवाई जाणह एवं दस सहसि लक्खे वा ॥ ७ जइ चट्टी मूलधणं दु लक्खं नव सहस पंच इ[? ग] तीसा ।
चउक सई भेइज्जइ ताम धणं.कित्तियं हवइ ॥ ८ (१) अथ देशांकेधणरासि अंतिमंको फुसिज तं बिउण विसुव दसमंसो। दो अंतिमंक फुसिए पणंसि तह विसुव सयमंसो ॥ ९ रासिरस अंतिमंके विसुवा विसुवंसगाइ सेस कमा । आइम अंकाणढे दम्मा जाणेह वीसंसे ॥ १०
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