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गणितसार - तृतीयाध्याय
अथ राशिव्यवहारमाह
समभुवि कयन्नरासी तप्परिहि खडंस वग्गु उदयगुणे । जं हुइ ते घणहत्था घणहत्थे इक्कि पत्तो य ॥ ९६ तिल - कुद्दव धन्नाणं नवंसु उदओ य रासि परिहीओ । दसमंसु मुग्ग गोहुम वोर कुलत्था इगारसमो ॥ ९७ सिहरु व्व वट्टरासी चउरुदयं तस्स परिहि छत्तीसं । भित्तिसंलग्गअद्धा कृणंतरि पाय परिही य ॥ ९८ बाहिरकूणे पडणं परिही उदओ सह जाणेह । किं जायइ करसंखा पिहु पिहु रासीण तं भणसु ॥ ९९ दल पाय पण परिही गुणिवि कमे दु चउ सत्तिहाएण । पुव्वु व्व फलं पच्छा नियनियगुणयारए भायं ॥ १००
॥ इति राशिव्यवहारसूत्रं सम्मत्तं ॥ गाहा ५ ॥
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अथ च्छायाव्यवहारसूत्रकरणमाहथंभाइ भित्ति च्छाया दंडि मिणवि गुणहु दंडमाणेण । तस्सेव दंडच्छाया हरिज्ज भायं फलेणुदयं ॥ १०१ चउवीसंगुल दंडे च्छाया थंभस्स तिन्नि दंड सवा । दंड सवा अट्ठारस अंगुल किं थंभु उच्चत्तं ॥ १०२ अथ साधनानयेनकरणम्समभूमि दु कर वित्थरि दुरेह वट्टस्स मज्झि रविसंकं । पढमंत छाय गब्भे जमुत्तरा अद्धि उदयत्थं ॥ १०३ चउ चउ इग मयराई पण तिय इग कक्कडाइ ध्रुव रासी । सत्तंगुल पह मुँणिजुव फल रूगयजुत्त दिवस गय सेसं ॥ १०४
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॥ इति च्छायाव्यवहारसूत्रं सम्मत्तं ॥ गाथा ४ ॥ एकत्र गाथा १०४ ॥ ॥ इति परमजैन श्रीचन्द्राङ्गज ठकुरफेरूविरचितायां गणितकौमुदीपाट्यां अष्टौ व्यवहाराणि (राः) समाप्त : (१प्ताः) ॥ ॥ इति तृतीयोऽध्यायः ॥
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