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ठक्कुर फेरूविरचित ज्योतिषसार
सवण धणिट्ठ विसाहा दक्खिण अवरेण मूल पुरसो य । कर पुव्वफग्गु उत्तर पुव्वे पुत्तरासाढा ॥ ४४ सोम -सणी पुव्वदिसे गुरु दाहिण पच्छिमेण सुक्क - रवी । उत्तर बुह - भूमो विय गमणे वज्जेह दिगसूलं ॥ ४५ ॥ इति नक्षत्रवार - दिक्शूलम् ॥ कित्तीउ सत्त सत्त य पुव्वाइ चउदिसेहिं परिघठिई । अग्गी वायव कोणे रेहा उल्लंघि न चलिज्जा ॥ ४६ ॥ इति परिधचक्रम् ॥
पुव्वाइदसदिसेहिं कमेण सियपडिवयाइ हुइ पासो । तरसम्मुहों य कालो गमणे दुन्नि वि समुहवज्जा ॥ ४७ दिणवारं पुव्वाई कमेण संघारि जत्थ ठाणि सणी । कालं तत्थ वियाणसु तस्संमुहु पासु भणहि इगे ॥ ४८ ॥ काल - पाशौ सन्मुखौ वज्य ॥ जिट्ठा य पुव्वभद्दब रोहिणिया तह य उत्तराफग्गू । पुव्वाइ सुकमि कीला संमुह गमणे विवज्जिज्जा ॥ ४९ ॥ इति कीलाः ॥
धण सीह मेस पुव्वे, विस कन्ना मयर दाहिणे चंदो । तुल कुंभ मिहुण अवरे, उत्तर अलि मीण कक्के य ॥ ५० वामो चंदो ऽसुहो निचं, दाहिणोऽहाणिकारगो । पिट्ठेि च असुहो चंदो, संमुहो अइसुंदरी ॥ ५१
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॥ इति चंद्रचार ॥
निसि अंतिमदुघडीओ पहरु पहरु पुव्वयाइ हुइ सूरो । गमणे दाहिण पिट्ठी पवेसगे वामु पिट्टि सुहो ॥ ५२
॥ इति रविचार ॥
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