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ठकुरफेरूविरचित ज्योतिषसार मुत्ति कलत्ते रवि सणि खडऽट इग ससि छ सत्त अड सुक्के । इग सत्तऽड कुजि अड गुरि सत्ताड बुहि किंदि राहु न विवाहं ॥ २४ उदय - ऽट्ठमगे मम्मं नव - पंचम कूर कंटयं भणियं । दसम - चउत्थे सल्लं कूरा उदय- ऽत्थितं छिदं ॥ २५ मम्मणदोसे मरणं कंटयदोसे कुलक्खयं हवइ । सल्लेण रायसत्तू छिद्दे पुत्तं विणासेइ ॥ २६
॥ इति लग्ने भंगकराः॥ अरिगय नीए वक्के अथमिए लग्गरासि निसिनाहे। अबले रवि-गुरु-चंदे अदिवसामी सया वजे ॥ २७
॥ इति लग्नदोषाः॥ चरलग्गेण य जत्ता दुच्चियभावे विवाह -सुरठवणा । थिरलग्गि गिहपवेसं मेसाई चर-थिर दु भावं ॥ २८ तणु धर्ण सहये सुमित्तं सुर्य सत्तुं कलत्त मि, धम्मं च । कम्म लौहं च वैयें लग्गाई सुकमि इय भावं ॥ २९ । ससि बीउ कुसुम्व लग्गो नवंसगो सुफलु तह य भाउरसो । लग्गो मग्गणहारो भावाहिवई य दायारो ॥ ३० जु जु भाउ सामि - मित्ते सुहग्गहे दिड जुत्तु सो सहलो । पावगहे हाणिकरो असेसकज्जेहि नायव्वो ॥ ३१ भावाहिवई भावं लग्गवई लग्ग लग्गवइभावं । भावाहिवो य लग्गं पिक्खइ ससिदिट्ठ सयलसुहं ॥ ३२ लग्गाहिवई जहिं जहिं भावे संचरइ तं तहा कुणइ।. मित्तगिहुचविसेसे इय तत्तं सव्वकज्जेसु ॥ ३३ ।। भावंतगओ य गहो परभावफलं च देइ पिच्छासु । जावंतिम इक घडी जम्म-विवाहाइ तत्थ फलं ॥ ३४
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