SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ ठकुरफेरूविरचित ज्योतिषसार मुत्ति कलत्ते रवि सणि खडऽट इग ससि छ सत्त अड सुक्के । इग सत्तऽड कुजि अड गुरि सत्ताड बुहि किंदि राहु न विवाहं ॥ २४ उदय - ऽट्ठमगे मम्मं नव - पंचम कूर कंटयं भणियं । दसम - चउत्थे सल्लं कूरा उदय- ऽत्थितं छिदं ॥ २५ मम्मणदोसे मरणं कंटयदोसे कुलक्खयं हवइ । सल्लेण रायसत्तू छिद्दे पुत्तं विणासेइ ॥ २६ ॥ इति लग्ने भंगकराः॥ अरिगय नीए वक्के अथमिए लग्गरासि निसिनाहे। अबले रवि-गुरु-चंदे अदिवसामी सया वजे ॥ २७ ॥ इति लग्नदोषाः॥ चरलग्गेण य जत्ता दुच्चियभावे विवाह -सुरठवणा । थिरलग्गि गिहपवेसं मेसाई चर-थिर दु भावं ॥ २८ तणु धर्ण सहये सुमित्तं सुर्य सत्तुं कलत्त मि, धम्मं च । कम्म लौहं च वैयें लग्गाई सुकमि इय भावं ॥ २९ । ससि बीउ कुसुम्व लग्गो नवंसगो सुफलु तह य भाउरसो । लग्गो मग्गणहारो भावाहिवई य दायारो ॥ ३० जु जु भाउ सामि - मित्ते सुहग्गहे दिड जुत्तु सो सहलो । पावगहे हाणिकरो असेसकज्जेहि नायव्वो ॥ ३१ भावाहिवई भावं लग्गवई लग्ग लग्गवइभावं । भावाहिवो य लग्गं पिक्खइ ससिदिट्ठ सयलसुहं ॥ ३२ लग्गाहिवई जहिं जहिं भावे संचरइ तं तहा कुणइ।. मित्तगिहुचविसेसे इय तत्तं सव्वकज्जेसु ॥ ३३ ।। भावंतगओ य गहो परभावफलं च देइ पिच्छासु । जावंतिम इक घडी जम्म-विवाहाइ तत्थ फलं ॥ ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy