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________________ १८ उक्कुरफेरूविरचित ज्योतिषसार मूल मिय सवण हत्थे पुस्सु पुणव्वसु कुज - ऽक्क - गुरुवारे । घणपक्खि सुद्धादियहे सीमंतयउन्नयं कुज्जा ॥ ५५ ॥सीमंतोन्नयनम् ॥ सवणाइ तिन्नि हत्थं रेवइ अणुराह साइ अस्सिणिया । पुस्सु पुणव्वसुऽभीई ति-उत्तरा सुहदिणे चंदे ॥ ५६ नामक[र]ण - ऽन्नपासण नयणंजण जायकम्म वयबंधं । सिप्पाइ चूडकरणं तणुभूसणमाइ कायव्वं ॥ ५७ ॥ इति नामकरण - अन्नप्रासन - चूडाकरणं च ॥ कर सवण चित्त रेवइ रोहिणि अणुराह पुस्सु जिट्ठा य । अस्सिणि पुणव्वसे वि य करिज सिसुकन्नवेह सुहा ॥ ५८ पुस्सु पुणव्वसु रोहिणि ति - उत्तरेहि कुसुंभवत्थाई । जत्तेण परिहरिज्जहु जइ वंछहु सुपइसोहग्गं ॥ ५९ ॥ इति कुसुंभवस्त्रे निषेधः॥ रोहिणि पमुहाईणं अंधय काणं च चिप्पडं अमलं । सयलहसुद्धिसुन्नं गयवत्थ कमेण उवएसं ॥ ६० ॥ इति श्री चन्द्राङ्गज - ठक्कुरफेरू-विरचिते ज्योतिषसारे व्यवहारद्वार द्वितीयं समाप्तम् ॥ २॥ [तृतीयं गणितपदद्वारम् ।] उज्जणि दाहिणुत्तर जत्थ ठिए सुहमु कीरए लग्गो । तत्थंतरस्स जोयण पंच उण रसेहिं जं पत्तं ॥१ बि-सैय छ उत्तर पिंडे हीणजुयं दाहिणुत्तरे कमसो । ससि-वेय भाइ लद्धं अंगुल - पडिअंगुलं जं च ॥२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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