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________________ द्वितीय व्यवहार द्वार एयरस फलं कमसो सिरिवइ मियहार सुहेड परएसं। चोरी सर लँहुतुट्टो तियरत्तु विदेस अप्पाँऊ ॥ २१ ॥ इति रविनक्षत्राद् रविचक्रम् ॥ मुहि दाहिणेकर पाए वामकरे हिये सिरे नयण गुज्झे । इर्ग चउँ छ चउँ पणे ति दु ? सणि नक्खत्ताउ सुकमेणं ॥ २२ रोयं लाह विदेसं बंधणे लाहं च पूर्यं सुहँ मियूँ । भणिया एइ गुणागुण गणिज ता जाव नियरिक्खं ॥ २३ . ॥ इति शनिचक्रम् ॥ चउ सिरि चउँ दाहिणकरि कंठिग पण हिये छ पार्य वामकरें। चउ, ति नयणि गुररिक्खा पय वामकरं वज्जि सेस सुहा ॥ २४ ॥ इति गुरचकं ॥ तम रिक्खु मुहि ति फुल्लिय चउ फलिय ति अहले ति झडिये गुडिक्कं तिय रायस तिय तामैस चउ सुहँ तिय अमुँह तमचकं ॥ २५ फुल्लिय फलिए लाहं अषा(खा)णि लच्छी सुहं च सुहि रिक्खे । मुह अहल झडिय रायस तामस असुहे य असुहतमं ॥ २६ ॥राहुनक्षत्राद् गणनीयम् ॥ राहतनुचकं-पुब्बा वायव्बो विय दाहिणे ईसाण पच्छिमऽग्गी य। उत्तर-नेरेइ सुकमे चउघडियं राहु दिणमाणं ॥ २७ ॥ इति राह दिनचक्रम् ॥ . पुव्वुत्तरऽग्गिनेरइ दाहिण पच्छिम्म वायवीसाणे । सियपडिवयाइ जोइणि कमि संमुह दाहिणे वजा ॥ २८ ॥ इति योगिनीचक्रम् ।। कसिणे सत्तमि चउदसि दिण भद्दा दसमि तीय रयणीए । सिय पुन्निमट्ठदियहे चउत्थि इक्कारसी य निसे ॥ २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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