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महमूद बेगड़ा का वंश-परिचय
[२७ के पद पर सुशोभित था। मुल्ला तथा मनोहर काव्यकर्ता के स्थान पर मौलाना जामी प्रतिष्ठित थे जो ईश्वरीय मार्ग एवं मोक्ष प्राप्ति के परम साधन ज्ञान में अनुभवी थे। उसी समय दिल्ली के तस्त पर सुलतान सिकन्दर बहलोल लोदी विराजमान थे। उनके वजीर परम बुद्धिमान और दूरदर्शी जीयान बहलोलखां लोदी थे। उसी समय मांड के तख्त पर सुलतान महमूद खिलजी के पुत्र सुलतान गयासुद्दीन बैठे थे जिनके शासन और उदारता की ख्याति चारों ओर फैल रही थी। उसी समय दक्षिण की गद्दी पर सुलतान महमूद बहमनी वर्तमान था । संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि कितने हो वर्षों बाद सुलतान महमूद गजनवी को आत्मा सुलतान महमूद बेगड़ा के रूप में अवतार लेकर आ गई थी क्योंकि उसके सभी कार्य उतने ही प्रतिष्ठित थे जितने कि उस महान सुलतान के थे।"
___ "कहते हैं कि जिस दिन सुलतान महमूद गद्दी पर बैठा उस दिन उसके जमाई खुदावन्द खां ने जो बड़ा विद्वान और वक्तृत्व कला में निपुण था, सुलतान के हाथ में दीवान हाफिज की पुस्तक देकर शकुन देखने के लिये प्रार्थना की। ज्यों ही सुलतान ने पुस्तक खोली अनायास उसमें इस आशय की कविता निकली ....... "अरे जिसके शरीर पर बादशाही का जलवा आ रहा है और जिसके नमूने के दो मोतियों से बादशाही झलक रही है।" .
__ "इस सुलतान के राज्य में कभी अनाज महँगा नहीं हुआ। प्रत्येक चीज सस्ते मूल्य पर प्राप्त होती थी। गुजरात के लोगों का कहना है कि गुजरात में ऐसी सस्ताई कभी नहीं देखी थी। चंगेजखां मुगल की तरह इसको सेना ने भी कभी पराजय का अनुभव नहीं किया था। सदा नई-नई विजय इसको प्राप्त होती थी। सुलतान ने एक आदेश जारी किया था कि सेना के आदमियों में से कोई ऋण न ले। उनके लिये सरकारी कर का कोई अंश अलग निर्धारित करके रख दिया जाता था जिसमें से सिपाही लोग आवश्यकतानुसार रकम उधार लेते थे और वापस जमा करा दिया करते थे। इस प्रबन्ध से व्यापारी लोग अवश्य ही कुछ संकट में पड़ गये थे और इसलिये वे उसकी आलोचना करते हुये उसे बुरा कहा करते थे। सुलतान बारम्बार कहा करता था कि जो मुसलमान ब्याज खाता है वह धर्म-युद्ध में नहीं टिक सकता। इसी कारण परमात्मा उसे युद्ध में विजयो करता था।"
_ 'ईश्वर की कृपा से गुजरात में आम, अनार, रायण, जामुन, नारियल, बेल और महुआ आदि के अनेक जाति के पेड़ प्रचुरता से मिलते हैं वे सब इसी महाप्रतापी सुलतान के सत्प्रयत्नों के फल हैं । प्रजा में जो कोई अपनी भूमि में पेड़ लगाता था उसको सहायता दी जाती थी । इसी कारण जनसाधारण में बागों की रचना करने व पेड़ लगाने की प्रवृत्ति बढ़ गई थी। इस सम्बन्ध में कहा जाता है कि सड़क पर या किसी झोपड़ी के आगे लगाया हुआ पेड़ देख कर सुलतान
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