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________________ २२] राजविनोद महाकाव्य बाहर आकर युद्ध शुरू किया। मलिक को हार हुई और सरकारी हाथी, कुछ घोड़े और सभी सिपाही मारे गये । यह खबर सुनकर सुलतान को बहुत क्रोध आया और उसने चम्पानेर पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का निश्चय किया। . जब चम्पानेर के रावल' ने सुना कि महमूद उसपर हमला करने आ रहा है तो पहले तो वह आवेश में आकर निकल पड़ा और सुलतान के मुल्क में आग लगाने लगा व मार काट करने लगा। परन्तु, फिर कुछ सोच विचार कर उसने सन्धि का प्रस्ताव कर दिया। महमूद किसी भी शर्त पर सन्धि करने को राजी न हुआ और अन्त में मुसलमानी सेना ता० १७ मार्च १४८३ ई० को काली के पर्वत की तलहटी में जा पहुंची। रावल ने एक बार फिर सन्धि के लिए प्रार्थना की परन्तु उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। अन्त में उसने पूर्ण साहस के साथ सामना करने का निश्चय किया। मुसलमानी सेना ने घेरा डाल दिया और राजपूतों ने उन पर आक्रमण चालू कर दिए। कई बार मुसलमानों के छक्के छूट गए परन्तु अन्त में विवश होकर रावल को अपने पुराने सहायक मालवा के सुलतान गियासुद्दीन से सहायता मांगनी पड़ी और वह उसका साथ देने के लिए रवाना भी हो गया। परन्तु, इतने ही में महमूद ने उस पर चढ़ाई कर दी और वह समय अनुकूल न देखकर मालवा लौट गया। महमूद भी अपने घेरे पर चम्पानेर लौट आया। __ अपना घेरा चालू रखने का आशय जानते हुए सुलतान ने वहीं एक मसजिद बनवाई और सुदृढ़ घेरा डाल दिया । अन्त में सुसलमान लोग किले के इतने नजदीक पहुंच गए कि उन्हें उस गुप्त मार्ग का भी पता चल गया जिससे राजपूत लोग नहाने-धोने व पानी आदि लेने के लिए बाहर आया करते थे । इसके बाद उन्होंने किले की पश्चिमी दीवार तोड़ डाली और उस मार्ग पर अधिकार कर लिया । यह घटना सन् १४८४ ई० के १७ नवम्बर की है । अब किले पर गोलाबारी शुरू हुई और उधर राजपूतों ने जौहर की तैयारियां की । चिता तैयार हुई और उसमें रानियाँ, दासियाँ, धन दौलत आदि सभी कुछ स्वाहा हो गए २ । इसके बाद पावागढ़ के रक्षक राजपूत केसरिया वस्त्र पहन कर बाहर आए और रणभूमि में मृत्यु प्राप्त की । चम्पानेर का रावल और उसका प्रधानमंत्री डूंगरशी जीवित पकड़ लिए गए । महमूद ने अपनी विजय के स्मारक-स्वरूप वहीं महमूदाबाद नामक नगर बसाया । रावल और डूंगरशी के घाव अच्छे होने पर उन्हें इसलाम धर्म (१) रावल गंगादास का पुत्र जयसिंह; फरिश्ता ने इसका नाम बेनीराय लिखा है । हिन्दू दन्तकथाओं में यह 'पताई रावल' के नाम से प्रसिद्ध है । (देखो रा० ब० गो० ही० ओझा कृत मेवाड़ का इतिहास )। (२) राजविनोद में पावक गिरिका यह वर्णन महमूद के पिता महम्मद के समय में होना बताया गया है “यस्य प्रतापभरपावकसंगमेन दग्धस्य पावकगिरेः शिखरान्तरेषु । प्रेक्षन्त जर्जरसुधाविधुराणि भस्मराशिप्रभाभि रिपवो निजमन्दिराणि ।। रा० वि० सर्ग २. १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003398
Book TitleRajvinod Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages80
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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