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________________ महमूद बेगड़ा का वंश-परिचय । [१३ के महीने में तातार खां की तबीयत एकदम बिगड़ गई और अच्छे अच्छे वैचों के दवा करने पर भी कोई फायदा नहीं हुआ। अन्त में, तातार खाँ को मृत्यु हो गई और उसका शव पाटण में लाकर दफनाया गया। गुजरात की हकीकत जानने वाले लोगों का कहना है कि कुछ दिखावटी मित्रों के कहने से तातार खां ने अपने पिता जफर खां को कैद कर दिया था और स्वयं मोहम्मवशाहका नाम धारण करके गद्दी पर बैठ गया।..............कुछ दिनों बाद उसके पास रहनेवाले जफ़रखां के हितचिन्तकों ने उसे जहर दे दिया । इसीलिए लोग उसको 'खुदाई शहीद' (The Martyred Lord) कहते हैं । इससे भी प्रतीत होता है कि उसकी मृत्यु स्वभाविक रूप से नहीं हुई थी। सुल्तान मोहम्मद की मृत्यु के बाद जफर खाँ फिर गद्दी पर बैठा। राज्य के नौकर चाकर सब उसके आधीन हो गए और उसने भी सबको आश्वासन दिया। ... प्राचीन इतिहास लेखकों ने लिखा है कि सुलतान मोहम्मद को मृत्यु के बाद राज्य के बड़े बड़े अमीरों और अधिकारियों ने इकट्ठे होकर जफ़र खां से प्रार्थना की कि बादशाह के वंश में दिल्ली के शासन को सम्हालने वाला अब कोई नहीं रह गया है और यहाँ पर गड़बड़ी फैल रही है। गुजरात के शासन जैसे बड़े कार्य को सम्हालनेवाला आपके सिवाय अन्य पुरुष दिखाई नहीं देता है। अतः समस्त प्रजा का यह मत है कि आप गुजरात का राजच्छत्र धारण करें । इससे सबको आनन्द होगा। ऐसी इच्छा रखनेबालों को प्रार्थना पर (?) वीरपुर ग्राम में हि० स० ८१० (१४०७ ई०) में सुलतान मोहम्मद को मृत्यु के तीन वर्ष और सात महीने बाद जफर खां ने राज्यछत्र धारण करके मुजफ्फरशाह नाम धारण किया ।' इस प्रकार सुलतान का पद धारण करने के पश्चात् मुजफ्फरशाह ने मालवा में धार के हाकिम अलपखान (दिलावरखाँ के पुत्र) को आधीन करने के लिए चढ़ाई की और उसको कैद करके उसके देश का शासन नुसरत खाँ को सौंप दिया। इसी बीच में खबर मिली कि जवानपुर के सुलतान इब्राहीम ने दिल्ली पर अधिकार करने की नीयत से कन्नोज के आगे लड़ाई का निशान रोप दिया है । उस समय दिल्ली के तख्त पर सुलतान मोहम्मदका पुत्र महमूद था। उसकी सहायता करने के लिए मुजफ्फरशाह ने दिल्ली की तरफ़ कूच किया । यह खबर सुनकर सुलतान इब्राहिम वापस जवानपुर चला गया। सुलतान मुजफ्फर ने उसका पीछा किया और फिर अपनी उदित्वरो यस्य बभौ जगत्यां सहस्रभानुप्रतिमः प्रतापः । यो मल्लखानाख्यमुलूकमिन्द्रप्रस्थस्थमुद्वेजितवान् द्विषन्तम् ।।८।। रा० वि० सर्ग २ । (१) दिल्लीपुराद् गूर्जरदेशमेत्य दधार यो मूनि सितातपत्रम ।।२।। रा० वि० सर्ग २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003398
Book TitleRajvinod Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages80
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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