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________________ ८० अध्याय २-रीति - काव्य उदाहरण रंच सुनि खबर उरोज उमगन लागे , कंचुकी के कठिन कसन दरकत हैं। सुषद सुठार भरे अमर प्रभा के मार , हिये पर मौतिनु के हार ररकत है। मोतीराम उदित सरदचंद पानंन तें, चंहु और रूप के प्रकास सरकत हैं। फिरति षुशाल आज लाल मिलवे को पाली, बाल के विसाल भुज जाल फरकत हैं।। इति मुदिता। एक और उदाहरण चिरियां चहूंधा चारु चरचा करन लागी , जागे अरुनोदय की किरण अमंद है। सोक तजि तजि कोकप्रिय नियरी सी होत , लोक में प्रकास भयौ फूले अरविंद हैं ।। मोती परभात भये आये अरसात गात , भले दरसात लाल जावके के बिंद है। भूली छरछदें प्रबलौकि नंदनदै नैन , नीरहि झरति परी और कछु फंद हैं । इस पुस्तक को पढ़ने के उपरान्त नीचे लिखी धारणाएं होती हैं १. इनके ग्रन्थ की अनेक विशेषतागों में प्रकृति-वर्णन भी एक है। एक उदाहरण देखिए गहगहे गहर गुलाब के समाज फूले , पाय रितुराज सुषसाज निपटे रहें। कलित भई हैं वन सघन सुषद वेलि , महमहे सौरभ समूह उपटे रहैं । मोतीराम मलयज मिलित अमंद गंध , मंद मंद मारुत के झूका झपटे रहे। मंजुल मृदुल मालतीनि मधुमत महा , मोद मन मुदित मलिंद लिपटे रहैं । २. यद्यपि इस पुस्तक में तो राज्यवंश का वर्णन नहीं मिलता, किन्तु यह दोहा अवश्य ही मिलता है श्री व्रजेंद्र को वंस सब, वरन्यौ तजि उरषेद । अब वरनो शृगार रस, सकल नायका भेद ।। इस दोहे के आधार पर यह कहा जा सकता है कि संभवतः इस कवि ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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