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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन भद पर है, जैसा इसके ६ उल्लासों से प्रगट है
१. स्रगार रस निरूपणं, २. स्वभाव नायका वर्ननं, ३. परकीया भेद निरूपनं, ४. नायका वर्ननं, ५. वियोग स्रगार दिसा वर्ननं, तथा
६. नायक भेद निरूपनं । अध्याय-विभाजन में 'नायक भेद' का केवल एक उल्लास दिया गया है। वैसे भी रीतिकाव्य के अंतर्गत जो गौरव और महत्त्व 'नायका' को प्रदान किया गया है वह बेचारे 'नायक' को कहाँ ? यह पुस्तक महाराज बलवंतसिंह के समय में रीति-काव्य पर लिखी सबसे प्रथम पुस्तक प्रतीत होती है, जैसा इसमें दिए गए ग्रन्थ-निर्माण-काल से प्रकट होता है
ठारै सै रु पिच्यासिया, संवत यो पहिचानि । फाग सुदी पांचे रवी, कीनौ ग्रंथ वषांनि ।।
(१८८५ वि०) सामान्या का लक्षण और उदाहरण देखें
लक्षण
जो तिय परपुरषन भजै, निहचे धन के काज।
सो सामान्या नायका, वरनत है कविराज । उदाहरण
सुषद सरोज सुमननि सौ सवारी सेज , अतर गुलाबनि सौ राषी तर करि के। चौमुषे चिराक चारु चहूँ और जोरि दीन, धोरि दीन घनें अगमद मोद भरि के। भूषन वसन रुचि पचि के सुधारे अंग , परे तन कपूर पान दांन दीने धरिकै । लाल हिय लागति हुलासिन सौ वालहाल ,
विमल विसाल लीनी मोतीमाल हरि के । मुदिता का लक्षण और उदाहरण -
लक्षण
वंछ पर पुरुषनि जुतिय, देषै सुनै निदांन । सकल सुकवि जन कहत हैं, मुदिता ताहि बखान ।
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