________________
५६
चित्र, चरणगुप्त आदि को चित्रों द्वारा मनोहर प्रणाली में हृदयंगम कराया
गया है ।
मंत्री गति चित्र स्वरूप देखिए
X
प्रत्येक पंक्ति में 'ही' 'न' 'त' की दो-दो बार प्रावृत्ति हुई है, साथ ही प्रत्येक पंक्ति में लघु गुरु का क्रम बराबर चला है ।
४.
अन्तिम बाईसवीं तरंग बहुत बड़ी है क्योंकि इसमें अलंकार-प्रकरण है । शब्दालंकार के अतिरिक्त अन्य सभी अलंकारों का इसी तरंग में निरूपण हुआ है । इस तरंग में ३०३ छंद हैं जिनमें से २६७ छंद अर्थालंकारों की परिभाषा, उदाहरण और व्याख्या में लिखे गए हैं। इस प्रकरण का निर्वाह बहुत सावधानी के साथ किया गया है। जिस प्रकार काव्यप्रकाश के अन्तिम उल्लास में अलंकारों का निरूपण है उसी प्रकार इस ग्रन्थ में भी अन्तिम तरंग का उपयोग अलंकारों को स्पष्ट करने के लिए किया गया है । काव्यप्रकाश में उल्लासों की संख्या १० है श्रीर सोमनाथजी के पीयूषनिधि में २२ तरंगें हैं किन्तु इन बाईस तरंगों को काव्यप्रकाश के १० उल्लासों में भलो प्रकार बिठाया जा सकता है । प्रथम दो तरंग परिचयात्मक हैं तथा ८ तरंग १५ तरंग तक नायिका वर्णन है, अतएव इन तरंगों को छोड़ कर बाकी तरंगें इस प्रकार बिठाई जा सकती है
५.
६.
क ही मु न वा त ग ही उ न ता त उही र न धा स ही म
त
न ही
बिन
सा त
न पां
उ ही
प्र न
दा
त
न पा त
उ ही सुन
ग्रा त
खा त
त
ज ही व न ही ग्र न म ही ब स ही ब न त ति ही बन जा यही दिन रा त च ही पन पा त
य ही गुन गा दही तिन
न
खा त
खा
त
बा
त
१. काव्यप्रकाश का प्रथम उल्लास
२.
द्वितीय
३.
तृतीय
चतुर्थ
पंचम
षष्ठम्
Jain Education International
"
23
17
33
"
अध्याय २ रीति-काव्य
""
"
-
"
"
त
11
पोषनिधि तरंग ३
For Private & Personal Use Only
33
"
11
"
"
६, ७
60
१६, १८
१७, १६
१६
www.jainelibrary.org